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________________ (१०६) कर लेता है। दूसरे शब्दो मे, आत्मा को निष्कर्म-दशा का नाम ही परमात्मा है। जव जीव या आत्मा शरीरपरिमाण वाला प्रमाणित है, सर्वव्यापक नही है, यह सिद्ध हो चुका है, तो ईश्वर या परमात्मा सर्वव्यापक कैसे सिद्ध हो सकता है ? अत. जैनदृष्टि से ईश्वर सर्वव्यापक नही है। जैनर्जन का विश्वास है कि सर्वार्थसिद्ध विमान से १२ योजन ऊपर सिद्धशिला है । इस सिद्धगिला के ऊपर अग्रभाग मे ४५०००,०० योजन लम्बे चौड़े और ३३३ धनुष तथा ३२ आंगुल जितने ऊचे क्षेत्र मे अनन्त सिद्ध आत्माएं विराजमान हैं। सिद्ध भगवान सदा इसी स्थान ने अनन्त आत्मिक आनन्द में मग्न रहते हैं। जैनदर्शन "ईश्वर सर्वव्यापक नही है" इस मान्यता को लेकर चलता है, यह सत्य है किन्तु जव अनेकान्तवाद की छाया तले बैठ कर इस मान्यता पर विचार करते हैं, तो ईश्वर को सर्वव्यापकता भो प्रमाणित हो जाती है, पर यह सर्वव्यापकता व्यक्ति की दृष्टि से नही है। व्यक्ति की अपेक्षा से तो ईश्वर सर्वव्यापक नहीं है, किन्तु यदि ज्ञान की दृष्टि से ईश्वर को सर्वव्यापक माना जाए तो जैनदर्शन को कोई आपत्ति नही है । क्योकि ईश्वर सर्वज है, सर्वदशी है, उस के ज्ञान मे मारा विश्व हस्तामलकवत् आभासित हो रहा है । विश्व का एक कग भी ईश्वरीय ज्ञान से ओझल नही है। अत. ज्ञान को दृष्टि ने यदि ईश्वर को सर्वव्यापक कहा जाए तो जैनदर्शन को कोई इन्कार नहीं है। __ मनुप्य ही ईश्वर हैवैदिक दर्शन के विश्वान के अनुसार ईश्वर एक है, अनादि है, अनन्त है और सर्वव्यापक है, किन्तु जैनदर्जन ईश्वर
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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