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ईश्वर-वाद ईश्वर-वाद भगवान महावीर का चतुर्थ सिद्धान्त है। ईश्वर क्या है ? उसका स्वरूप कैसा है ? जैन दर्शन और वेदिक दर्शन में ईश्वर शब्द किस रूप मे पाया जाता है ? आदि सभी बातो के सम्बन्ध मे यहा पर प्रकाश डाला जाएगा ।
वैदिक दर्शन मे ईश्वर शब्दईश्वर शब्द वैदिक दर्शन का अपना पारिभाषिक शब्द है। वैदिक दर्शन के अनुसार उस परम शक्ति का नाम ईश्वर है, जो इस जगत की निर्मात्री है, एक है, सर्व व्यापक है और नित्य है। वैदिकदर्शन का विश्वास है कि ससार के कार्य-चक्र को बागडोर ईश्वर के हाथ मे है, ससार के समस्त स्पन्दन उसी की प्रेरणा से हो रहे हैं । वह ईश्वर सर्वशक्तिमान है, जो चाहे कर सकता है, कर्तव्य को अकर्तव्य. और अकर्तव्य को कर्तव्य बना देना "उसके वाये हाथ की कला है। सारा ससार उस को इच्छा का खेल है, उस की इच्छा के बिना एक पत्ता भी नही हिल सकता । संसार का उत्थान-पतन उसी के इशारे पर हो रहा है । अच्छा तथा बुरा सव ईश्वर करता है । अन होने के कारण जीव अपने सुख दुख का स्वय स्वामी नहीं है, इस का स्वर्ग या नरक जाना
कर्तु मकर्तु मन्यथा कर्तुं समर्थ ईश्वर । अज्ञो जन्तुरनीगोऽयमात्मन सुख-दुःखयो । ईश्वरप्रेरितो गच्छेत्, स्वर्ग वा श्वभ्रमेव वा ॥
(महाभारत)