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ने इसी सम्बन्ध मे कृष्ण से पूछा था । उस के अपने शब्द निम्नोक्त है
अथ केन प्रयुक्तोऽय पाप चरति पूरुषः । अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय !, बलादिव नियोजित ॥
भगवद्गीता अ० ३-३६ अर्थात्-हे कृष्ण | यह आत्मा किस शक्ति के द्वारा प्रेरित होता हुआ पापकर्म का आचरण करता है ? पाप करना न चाहता हुआ भी मनुष्य किस के द्वारा पाप के गड्ढे मे धकेल दिया जाता है ? ___ इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान कृष्ण ने वहुत सुन्दर बात कही थी। उन के अपने शब्द इस प्रकार हैं
काम एष क्रोध एषः, रजागुण-समुद्भव. । महाशना महापाप्मा, विद्धयेनमिह वैरिणम् ।।
भगवद् गीता अ० ३-३७ अर्थात् हे अर्जुन । रजोगुण से उत्पन्न होने वाला काम, क्रोध ही आत्मा को पाप की ओर प्रवृत्त करता है। इसे ही तू पाप कराने वाला अपना शत्रु समझ ।
भगवान महावीर भी कर्मवन्ध का कारण काम, क्रोध, आदि विकार वतलाते हैं। ये विकार ही ससार के विषवृक्ष की जड़ो को सीचते रहते हैं। इन्ही के कारण आत्मा पापकर्म मे प्रवृत्त होती है
प्रश्न.- क्या कभी जीव कर्मों से मुक्त भी हो सकता है ? उत्तर-जोव को कर्मबन्धन मे लाने वाले क्रोध, मान,