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(८५) है ? क्या कभी जीव कर्मो से सर्वथा रहित भी था ?
उत्तर-जीव और कर्म का सम्बन्ध अनादिकाल से चला पा रहा है। खान से निकले समल (जल सहित) स्वर्ण की तरह आत्मा सदा से कर्मो से लिप्त रह रही है। ऐसी कोई घडी नही थी कि जब आत्मा कर्मों से सर्वथा मुक्त हो । यदि आत्मा को बिल्कुल कर्म-रहित मान लिया जाए तो प्रश्न उपस्थित होता है कि शुद्ध आत्मा कर्मों से लिप्त कैसे हुई ? कौनसा ऐसा कारण था, जिस के प्रभाव से आत्मा को कर्मबद्ध होना पड़ा? निष्कर्म आत्मा मे विकारो का सर्वथा अभाव होता है । निर्विकार आत्मा कर्मबद्ध हो नहीं सकतो? दूसरी बात, यदि सर्वथा शुद्ध और निर्विकार आत्मा भी कर्मलिप्त हो सकती है तो शुद्ध और निर्विकार स्वरूप मे रहे मुक्त जीव भी कर्मो से लिप्त हो जाया करेगे ? ऐसी दशा मे मुक्ति का क्या महत्त्व रहेगा ? इन सव प्रश्नो का कोई सन्तोषजनक समाधान नही मिलता है । अत यही मानना उपयुक्त और तर्कसगत है कि आत्मा और कर्म का सम्बन्ध अनादिकालीन है और कर्मबद्ध आत्मा अतीत मे कभी कर्मों से सर्वथा अलिप्त नही थी।
प्रश्न-जीव कर्मो का बन्ध क्यो करता है ? । - उत्तर-कर्मो का वन्ध जीवनगत हिसा, असत्य, चौर्य, मैथुन, असन्तोप, क्रोध, मान, माया आदि विकारो के कारण होता है । विकार ही प्रात्मा को कर्मो की वेडियो मे जकडते हैं और नरक, तिर्यञ्च आदि दुर्गतियो के दुख-प्रवाह मे प्रवाहित करते है । जहा-जहा विकार है वहा कर्मवन्ध होता है। विकारो के अभाव में कर्मबन्ध नहीं हो सकता । एक वार अर्जुन