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चमत्कारो को जन्म देते है । इस मे असंभव कुछ नही है ।
प्रश्न-ससार मे सर्वत्र कर्मयोग्य पुद्गल भरे पडे है, उन मे शुभाशुभ कोई भेद नही है । फिर पुद्गलो मे शुभाशुभ का 'भेद कैसे होता है ?
उत्तर-जीव का यह स्वभाव है कि वह अपने शुभाशुभ परिणामो के अनुसार परमाणुओ को शुभाशुभ रूप मे परिणत कर के ही ग्रहण करता है। इसी प्रकार शुभाशुभ भाव के आश्रय वाले परमाणुओ मे भी ऐसी योग्यता रही हुई है कि वेशभाशुभ परिणाम सहित जीव से ग्रहण किए जाकर शुभाशुभ रूप में परिणत हो जाते हैं। इस तथ्य को एक उदाहरण से समझ लीजिए
सर्प और गाय, ये दो प्राणी हैं। इन दोनो को दूध पिलाया जाता है । सर्प मे जाकर वह दूध विष का और गाय मे वह दूध का रूप धारण कर लेता है । इस का कारण केवल आहार और 'आहार ग्रहण करने वाले प्राणी का स्वभाव है। आहार का ऐसा स्वभाव होता है कि वह एक सा होता हुआ भी आश्रय के भेद से भिन्न-भिन्न रूप से परिणत हो जाता है। इसी प्रकार सर्प और गाय मे भी अपनी-अपनी ऐसी शक्ति रही हुई है कि वे एक से आहार को भी भिन्न-भिन्न रूप से परिणत कर देते है । ऐसे ही जीव अपने स्वभावानुसार कर्म-योग्य पुद्गल को शुभाशुभ रूप मे परिणत कर देने की क्षमता का गुण रखता है । उसी गुण के अनुसार कर्म योग्य पुद्गल शुभाशुभ रूप मे परिणत हो जाते है।
प्रश्न-जीव और कर्म का सम्बन्ध कब से चला आ रहा