________________
कर और गरदन मे फदा डालकर नीचे से तख्ता हटाया गया तो तत्काल फदा टूट गया, फन्दा पुन. डाला गया, पर वह दूसरी बार भी टूट गया, इस तरह मात वार गरदन मे फदा डाला गया और तख्ता हटाते ही वह मातो वार टूट गया। तब राज्य-कर्मचारियो ने इन्हे कोई निर्दोष तपस्वी जान कर उनसे क्षमा मागी और छोड दिया।
इस तरह संगम देव लगातार छ महीने प्रभु को परिपीडित करता रहा, तथापि प्रभु अपनी धर्म-साधना से एक तिल भर भी इधर-उधर नहीं हुए। भगवान को पूर्ण वीर और धीर देख कर अन्त मे सगम निराश हो गया। देवराज गकेन्द्र महाराज के द्वारा की गई स्तुति से प्रभावित होकर तत्काल प्रभु के चरणो मे नतमस्तक होकर क्षमा मागने लगा। समा माग कर सगम वापिस जाने ही लगा था कि उसे प्रभु की आखो मे आसू दिखाई दिए । प्रासू देख कर वह आश्चर्यचकित रह गया। उसने भगवान से पूछा :
"भगवन् । आपके नेत्रो मे ये आसू क्यो ? जब इतने भयकर सकट काल मे आप नही घबराए, तो अव यह अधीरता कैसी ? क्या कोई कष्ट है ?"
"सगम | मेरे पास रहकर तुमने पापो का जो वोझ अपने सिर पर लाद लिया है, एक दिन उनका तुम फल प्राप्त करोगे, उस फल का उपभोग करते हुए जव तुम तडपोगे और वह तडप जव मेरे ज्ञान-चक्षयो के सम्मुख पाती है तो मेरा कलेजा काप उठता है। मैं सोचता ह, उस तडप का कारण मै बना हूं। इसी वात का मुझे अत्यधिक दुःख है। मैं किसी को परिपीडित नही देख सकता," यह कहते-कहते प्रभु की आखे फिर डवडवा पाई ।
करुणामूति-प्रभु वीर की परमपावनी करुणा को देखकर सगम पानी-पानी हो गया। मन ही मन उसने कहा-'कहा मै निर्दयी, अधम, नीच एव पामर-जीव और कहा ये मेरे ही दु.ख से आकुल-व्याकुल होने वाले महान् करुणाशील आदर्श सन्त ?' उसे बडी श्रात्म-ग्लानि हुई। उसका दिल भर आया, उसने देवाधिदेव भगवान महावीर के पावन चरणो मे प्रणत हो कर विनति की- "करुणा-सागर | आज मै ने पहली वार आपके करुणा-स्वरूप पवित्रात्मा के दर्शन किए है । प्रभो । पञ्च-कल्याणक]
[७३