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शुमाया गया. कालचक्र (वह चक्र जो मृत्यु-जनक हो) चलाया जिससे भगवान घुटनो तक ज़मीन मे धस गये, देव रूप से विमान मे बैठकर मामने आया और बोला- "स्वर्ग चाहिए या अपवर्ग अर्थात् मोक्ष ?" तथा वीस स्वर्गीय देविया उपस्थित की गई जो वैपयिक हावभाव के साथ भगवान के आगे अश्लील नृत्य करने लगी।
इस तरह सगम देव ने भगवान महावीर को प्रतिकूल और अनुकूल सभी तरह के कष्ट दिए, यह सव कुछ एक ही रात्रि मे किया गया था। भगवान के जीवन की यह सबसे बडी भयकर रात्रि थी। इस रात्रि मे सगमदेव ने भगवान को ध्यान से विचलित करने के लिये अपनी सारी शक्तिया लगा दी, परन्तु यह सव कुछ कर लेने पर भी वह भगवान को साधना से चलाय मान नही कर सका । प्रभु ने इन समूचे सकटो को कर्मयोग समझ कर पूर्ण समताभाव के साथ सहन किया। करुणा के परम-पावन स्त्रोत
भगवान के विहार कर देने पर भी उसने भगवान का पीछा नही छोड़ा। भगवान 'तोसली गाव' के उद्यान में ध्यान लगाए खड़े थे तव सगम भगवान को उकसाने के लिये साधु का वेष पहन कर किसी के यहा चोरी करने लगा। पकडा जाने पर जब उसकी पिटाई होने लगी तो उसने तत्काल लोगो से कहा-''मेरा कोई दोष नहीं है, मेरे गुरु ने मुझे चोरी करने को कहा था, मैं तो केवल गुरु की आज्ञा का पालन कर रहा हू, जो कुछ कहना है मेरे गुरु को कहो। मेरे गरु बाहिर उद्यान मे कपट-ध्यान लगाकर खड़े है।" लोगों ने सगम की इस बात पर विश्वास करके प्रभु को बहुत बुरी तरह से परेशान किया, परन्तु प्रभु ने इस परेशानी को भी शान्ति के साथ सहन किया।
__अव महावीर 'मोसलीगाव' पधार गए, गाव के बाहिर ही जब प्रभु ध्यान मे अवस्थित हो गए तव सगम ने उनके पास अनेको शस्त्रास्त्र रख दिए और स्वय चोरी करता हुया जव पकडा गया तो भगवान को अपना गुरु वताकर फिर पकड़वा दिया । राज्य-कर्मचारियो ने जव शस्त्रास्त्र देखे तो भगवान को पक्का चोर समझ कर फासी पर लटकाने का निर्णय कर दिया। ज्यो ही भगवान को फासी के तख्ते पर चढा
[ दीक्षा-कल्याणक