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इधर प्रभु ध्यान की ज्योति जगा रहे थे और उधर स्वर्गपुरी मे देवराज शक्रन्द्र प्रभु की ध्यान-गत दृढता की महिमा गाते हुए कह रहे थेमहावीर जैसे वीर और धीर तपस्वी को आज तक किसी जननी ने जन्म नही दिया। मानव तो क्या दानव भी भगवान महावीर को उनकी ध्यान साधना से विचलित नही कर सकता।
देव-सभा मे सगम नाम का एक देवता भी बैठा हुआ था। वह शक्रेन्द्र महाराज की बात से सहमत नही था। उसका विचार था कि महावीर भी एक अन्नकीट मानव है, उनको ध्यान-माधना से गिराना क्या कठिन है ? मालूम होतो है हमारे इन्द्र को महावीर से कुछ वैयक्तिक लगाव है, अन्यथा वे चुनौती की भाषा मे कभी न बोलते। चलो. आज महावीर के महावीरत्व को परखता हूँ।
उसने आते ही कष्टो का जाल बिछा दिया । प्रभु के रोम-रोम मे भयकर वेदना उत्पन्न करके उनको विचलित करने के प्रयास किए गए।
प्रलयकारी धूल की वर्षा की, वज्रमुखी चीटिया उत्पन्न की गई, जिन्होने मास नोच-नोच कर प्रभु के गरीर को खोखला कर दिया, डास और भयकर मच्छर छोडे गए जो प्रभु का रक्त चूसने लगे, दीमक उत्पन्न की गई जो प्रभु के शरीर को काटने लगी, विच्छुप्रो द्वारा जहरीले डक लगवाए, नेवले उत्पन्न किए जो प्रभ के मास को नोचने लगे. भीमकाय सर्प उनके शरीर को काट-काट कर खाने लगे, हाथा और हथिनिया प्रकट को गई जिनकी सूंडो से प्रभु को उछलवाया गया और उनके तीक्ष्ण दातो से प्रभु पर प्रहार करवाए गए, पिशाच वन कर उन्हे डराया, धमकाया और वों से परिव्यथित किया गया, प्रभु के शरीर को बाघ बन कर नखो से विदोर्ण किया गया,सिद्धार्थ और त्रिशला का रूप धारण कर उनको विलाप करते दिखाया गया, भगवान के पैरो के मध्य मे आग जला कर भोजन पकाने की चेष्टा की गई, चण्डाल का रूप बना कर भगवान के शरीर पर पक्षियो के पिजरे लटकाए गए, जो अपनी चोचो और नखो से शरीर पर प्रहार करने लगे और आधिया चलाकर अनेको बार भगवान के शरीर को ऊपर उठाया और नीचे फेका, कलकलिका वायु (वह वायु जो वडे वेग के साथ चक्र के आकार मे घूमतो है) उत्पन्न करके उससे भगवान को चक्र की तरह पञ्च-कल्याणक]
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