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करने के लिए नौका का एक बार फिर प्रयोग करना पड़ा। धीरे-धीरे भगवान वाणिज्य ग्राम मे पधार गये । वाणिज्य ग्राम मे भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा के आनन्द नामक एक श्रावक रहते थे, इन्हे अवधिज्ञान प्राप्त हो रहा था। भगवान के चरणो मे पानन्द भी पहुचे। प्रभु को वन्दना करने के अनन्तर इन्होने कहा-'भगवन ! आप का मन और तन दोनो ही वज्र जैसे दृढ हैं, इसीलिए आप कठोर से कठोर सकट को समभाव से सहन कर लेते है, पर आप की तप साधना बहुत जल्दी ही सफल होनेवाली है। एक दिन यह साधना आप को केवल ज्ञान की महाज्योति से ज्योतिर्मान बना देगी।" यह कह कर आनन्द श्रावक वन्दन करके चले गए। प्रभु ने भी वाणिज्यग्राम से विहार कर दिया और वे श्रावस्ती नगरी मे पहुचे। दसवां चातुमसि इन्होने इसी नगरी मे व्यतीत किया। संगम देव के उपद्रव
भगवान महावीर ने चातुर्मास के अनन्तर श्रावस्ती नगरी से विहार कर दिया और वे "सानुलट्ठिय सन्निवेश" मे पधार गए। वहा पर प्रभु ने लगातार सोलह दिन का उपवास किया। भद्रप्रतिमा, महाभद्रप्रतिमा और सर्वतोभद्रप्रतिमा की आराधना भी सम्पन्न की। भद्रप्रतिमा मे प्रभु पूर्व, दक्षिण पश्चिम और उत्तर दिशा मे चार-चार प्रहरो तक ध्यान करते रहे। दो दिन की तपस्या का पारणा न कर के प्रभु ने महाभद्रप्रतिमा की आराधना आरम्भ कर दी। इसमे प्रति दिशा एक-एक दिन रात तक ध्यान लगाया। फिर इस का पारणा क्एि विना ही सर्वतोभद्रप्रतिमा की साधना प्रारम्भ करदी। इसमे दश दिशाप्रो के कम से एक-एक दिन रात तक ध्यान लगाए और यह दश दिनो मे सम्पन्न की। इस तरह सोलह दिन के उपवासो मे प्रभु ने तीनो प्रतिमानो की ध्यान साधना परिपूर्ण करदी। तदनन्तर प्रभु ने आनन्द गाथापति के घर से सोलहदिनो के व्रतो का पारणा किया । प्रभु की इस कठोर तप साधना से प्रभावित हो कर देवताओ ने आनन्द गाथापति के घर पाच दिव्यो की वर्षा की।
सानुलट्ठिय सन्निवेश" से विहार करके प्रभु "दृढ भूमि" पधारे इस नगर के उद्यान मे प्रभु ने तेले की तपस्या करके ध्यान लगा दिया।
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[दीक्षा-कल्याणक