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________________ rझ अधम को क्षमा कर दो। आज स्वर्ग-लोक की देवी-शक्ति इस अध्यात्म-शक्ति के सन्मख लज्जित है, पराजित है और विजित है।" अन्त मे सगम प्रभु से क्षमा का आश्वासन पाकर वहां से चला गया। छः मास को घोर तपस्या और ग्यारहवां चातुर्मास : जब सगम चला गया तब भगवान ने अन्न-जल ग्रहण किया। जिस दिन यह अन्न-जल ग्रहण किया गया था, यह भगवान की उपसर्ग सहित छ मास की लवी तपस्या का पारणा था और प्रभु ने ब्रजगाव से विहार किया। 'श्वेताम्बिका' आदि नगरियो के वाहिर एक उद्यान मे प्रभु ने ग्यारहवा चातुर्मास व्यतीत किया। इस चातुर्मास मे वे लगातार चार महीने तपस्या ही करते रहे। जीर्ण सेठ की लक्षण दान-भावना: वैगाली नगरी मे जिनदत्त नाम के साधु-सन्तों के परम-भक्त श्रावक थे, इनका निवास स्थान जीर्ण-शीर्ण था, इसीलिये ये जीर्ण-सेठ के नाम से प्रसिद्ध थे। ये प्रतिदिन भगवान के दर्शनार्य जाया करते थे। "मेरे घर भी प्रभु पाहार ग्रहण करे' यह इनकी प्रबल भावना थी। इसीलिये ये प्रतिदिन भगवान से निवेदन भी करते थे, परन्त निरन्तर उपवास चलते रहने के कारण इनकी आशा पूर्ण नहीं हो पा रही थी। जीर्ण-सेठ को पूर्ण विश्वास था कि चातुर्मासिक-तप का पारणा भगवान मेरे यहा पर करेंगे। इसी विश्वास पर ये चातुर्मास समाप्ति से अगले दिन अपने घर मे बैठ कर भगवान की प्रतीक्षा करने लगे। भगवान जीर्ण-सेठ के घर न जाकर पूर्ण नामक किसी दूसरे सेठ के घर पचार गए और वही पर इन्होने चातुर्मासिक-तप का पारणा कर लिया। इधर जीर्ण सेठ की प्रतीक्षा बडा ही उत्कृष्ट-रूप धारण कर चुकी थी। भावनागत समुच्चता के कारण जीर्ण-सेठ ने वारहवे देवलोक मे पंदा हो जाने की भूमिका तैयार करली । चमरेन्द्र द्वारा शरण-ग्रहण करना : वैशाली का चातुर्मास समाप्त करके प्रभु 'मु सुमार' पधारे, वहा [ दीक्षा-कल्याणक
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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