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________________ त्रिपृष्ठ वासुदेव के पूर्व जन्म मे भगवान महावीर के जीव ने एक सिह को मारा था, उसी सिंह का जीव सुदष्ट्र नाम का देवता वना । पुरातन वैरभाव के कारण उसी देव ने यह सारा उपद्रव खडा किया था । उपद्रव भी इतना भयकर था कि यात्रियो के कलेजे काप उठे । सव को अपनी-अपनी अन्तिम घडी दिखाई देने लगी । परन्तु अकेले महावीर जो सर्वथा निर्भीक थे, केवल उनके चेहरे पर भय का चिन्ह भी नही था । उपद्रव का प्रारंभ तो काफी भयकर था, परन्तु प्रभु कृपा कुछ ऐसी हुई कि ग्राधी धीरे-धीरे शान्त हो गई और यात्री विना किसी विघ्नवाधा के दूसरे किनारे पर पहुच गए। सभी यात्रियो की जिह्वा पर यही स्वर नाच रहे थे - " हमारी नय्या के खिवय्या तो महावीर ही है, यदि आज ये हमारे मध्य मे न होते तो हम सव समाप्त हो जाते।" वृद्ध परम्परा का विश्वास है कि भवनपति जाति के कम्बल और गम्बल नामक नागकुमारो ने उपद्रवी देव को समझा कर यह उपद्रव शान्त किया था, परन्तु हमारा विश्वास है कि इन नागकुमारो के पुरुषार्थ के पीछे भी भगवान महावीर का ही पुण्यप्रताप काम कर रहा था । गोशालक का नियतिवाद भगवान महावीर ने दूसरा चातुर्मास नालदा मे किया । यहा प्रभु एक जुलाहे के मकान मे ठहरे थे । मखलिपुत्र गोशालक' भी वही पर ठहरा हुआ था । भगवान महावीर के विलक्षण एव आदर्श त्यागवैराग्य से वह भी बहुत प्रभावित हुआ । इस चातुर्मास मे भगवान ने महीने - महीने का उपवास तप चालू कर दिया । पहले मास-क्षमण (मास के क्षमण-उपवास) का पारणा जिस घर मे हुग्रा उस घर मे देवताग्रो ने पाच दिव्यो की वर्षा की इससे सारे नगर मे तपोमहिमा का प्रसार हो गया । गोशालक ने जब तप की ऐसी ग्राश्चर्य जनक महिमा देखी तो वह भी भगवान के पास आने-जाने लगा । दूसरे मासक्षमण के पारणे १ मखलि नामक एक मख [ एक भिक्षुक जाति जो चित्रपट दिखाकर जीवननिर्वाह करती है ] के पुत्र को गौशाला मे पैदा होने के कारण गोशालक कहा जाता था । पञ्चकल्याणक ] [ ६३
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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