________________
५. एक श्वेत गो-वर्ग सम्मुख खडा देखा। ६ विकसित पद्मसरोवर देखा। ७ अपनी मुजानो से महाससुद्र को तैरते हुए देखा। ८ विश्व को प्रकाशित करते हुए सूर्य को देखा। ६ वैडूर्य वर्ण सी अपनी प्रातो से मानुपोत्तर पर्वत को वेष्ठित
करते देखा। १० अपने आपको मेरु पर्वत पर चढते देखा।
इन स्वप्नो के अनन्तर उनकी निद्रा भग हो गई और वे पुन• अपने आत्म-चिन्तन मे तल्लीन हो गए।
अस्थिक ग्राम मे उत्पल नाम के एक निमित्तज्ञ (ज्योतिपी) रहते थे। वे कभी भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा के सन्त थे, किन्तु दुर्वलता वश साधु-वृत्ति छोड कर गृहस्य बन गए थे। जब इन्हे पता चला कि महावीर शूलपाणि यक्ष के मन्दिर मे ठहरे हैं तो अनिष्ट की सभावना मे उसका कलेजा कांप उठा। प्रात.काल होते हो वह यक्ष के मन्दिर मे पहुचा तो वहा भगवान को सकुशल देखा तथा "भगवान महावीर की दयादृष्टि से शूलपाणि यक्ष का उपद्रव सदा के लिए शान्त हो गया है।" इस हर्ष समाचार से प्रसन्न हुए अस्थिक ग्राम निवासियो को भगवान की महिमा का गान करते देखा तो उनको परम हादिक सन्तोष हुआ।
उत्पल अपने दैविक इष्ट के बल से मन की बात भी जान लेते थे, इसीलिये जव उन्हे भगवान के.देखे दश स्वप्नो का जान हुआ तव उन्होने स्वप्नो का फलादेश बतलाते हुए भगवान से प्रार्थना की-'प्रभो। आज रात्रि को आपने जो दश स्वप्न देखे हैं वे बड़े महत्त्वपूर्ण, उत्तम और शुभ फलदायक हैं। इन स्वप्नो का फलादेश देख कर ऐसा लगता है कि एक दिन आप विश्व के जाने-माने महाप्रतापी महापुरुप होगे, ससार की ममूची शक्तिया आपकी चरणदासी होगी। आप तो सब कुछ जानते ही हैं, परन्तु मैं अपने अनुभव के आधार पर स्वप्नो का जो फलादेश जान सका हूं, वह आप श्री के पवित्र चरणो मे निवेदन करता हू:
१ तालपिशाच दीर्घकाय राक्षस का नाम है। इसको मारने का अर्थ है कि आप श्री मोह-रूप कर्म-पिशाच का अन्त करेंगे।
[ दीक्षा-कल्याणक