________________
का बढ़ना स्वाभाविक ही था । पालकी दूर निकल चुकी है अब तो केवल वर्धमान की जय हो रही थी तथा हजारो हितचिन्तक व्यक्ति भगवान महावीर को प्रेरणा प्रधान वाते भी कह रहे थे
वर्धमान ! "यदि आपने स्वर्ण - सिंहासन छोडा ही है तो अब ज्ञान दर्शन, चारित्र को विलक्षण आराधना से इन्द्रियो का पूर्णतया दमन करो, राग और द्वष ये दोनो सवल मल्ल हैं इनको पछाड़ो, कर्मशत्रुनो को नष्ट करके परम साध्य मोक्ष को अधिगत करो, सिह वन कर निकले हो तो अन्तिम क्षण तक सिंह ही वन कर रहो और समस्त विघ्न-बाधामो पर विजय प्राप्त करो। महावीर की जय, वैशाली का तपस्वी अमर है, भद्र महापुरुष की जय, महावीर का, कल्याण हो, महावोर, इन्द्रिय-विजयी हो, श्रमण-धर्म के पालन मे, सफल हो, महावीर को केवलज्ञान प्राप्त हो, महावीर का मार्ग निर्विघ्न हो, जय हो विजय हो की ध्वनिया मेरे कानो मे गूंज रही हैं।
...
FANARTA