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________________ श्री प्राचारांग सूत्र की मान्यता के अनुसार भगवान महावीर के दीक्षा महोत्सव मे भवनपति, वाणव्यन्तर ज्योतिष्क और वैमानिके इन चागे प्रकार के देवदेवियो के समूह अपने-अपने विमानो मे बैठ कर पूर्ण ऋद्धि-समृद्धि के साथ समुपस्थित हुए। उन्होने श्री वर्धमान के लिये नव्य और भव्य मिहामन को रचना को। दीक्षा का कार्यक्रम चालू करते हए उन्होने सर्वत्रयम पूर्व दिशा को पोर मुख करके भगवान महावीर को उम सिंहासन पर बैठाया, तदनन्तर शतपाक' और सहस्त्रपाक तेल से भगवान महावीर का अभ्यगन किया, क्षीर-सागर के स्वच्छ जल से उन्हे स्नान कराया, सुगन्धित वस्त्र से शरीर पोछा, गोशीर्ष-वन्दन का शरीर पर लेप किया, भार मे हल्के और वहमूल्य वस्त्र एवं आभूषण पहनाए, जिप समर भगवान को वस्त्रो, आभूपणो मे विभूपित किया गया, उस समय वे कल्पवृक्ष की तरह सुशोभित हो रहे थे। भगवान का रूप-सौन्दर्य इतना अधिक तेजस्वी और निखरा हुआ प्रतीत हो रहा था कि स्वय सौदर्य भी उनके सौन्दर्य के आगे नतमस्तक हो गया था। अन्त मे अनुपम छवि के धारक भगवान महावीर को चन्द्रप्रभा नामक उस पालकी मे विठलाया गयो जिस पालकी को मनुष्यो और देवो ने मिल कर उठाया। वर्षमान जैसे ही चन्द्रप्रभा नामक पालकी मे बैठे, जनता ने जय-जयकार किया, वैशाली का प्रिय राजकुमार विदा हो रहा था, प्रत. जनता को दुःख होना ही था, परन्तु वैशाली का राजकुमार उस अमर पथ पर जा रहा था, जहा पहुच कर वह अमरता के द्वार सब के लिये खोल देगा, अत. वैशाली के जन-जन का हपित होना भी स्वाभाविक था। वटी हुई रस्सियो की तरह जनता के हर्ष और दुख परस्पर मिले हुए थे। चन्द्रप्रभा पालकी विरक्त महावीर को ईशानकोण की ओर जा रही थी। ईशान-पूर्व और उत्तर का कोण है। पूर्व से ज्ञान का सूर्य निकलना था, विश्व-कल्याण की भावना उत्तरोत्तर विकसित होनी थी, अत पूर्व और उत्तर के कोण मे स्थित जातखण्ड की ओर पालकी १ एक मौ औषधिया से बनाया गया एक तरह का उत्तम तेल । पञ्च-कल्याणक] [३९
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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