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नानाविधरूपचिता विचित्रकूटोच्छ्रितां मणिविभूषाम् । चन्द्रप्रभाख्य-शिविकामारुह्य पुराद्विनिष्क्रान्तः ।। मार्गशिरकृष्ण-दशमीहस्तोत्तर- मध्याश्रिते सोमे ।
षष्ठेन त्वपराले भक्तेन जिनः प्रववाज । मगशिर कृष्णा दशमी के दिन देवी द्वारा निर्मित मणि-विभूषित चन्द्रप्रभा नाम की पालकी पर विराजमान होकर जवकि चन्द्रमा उत्तराहस्त नक्षत्र मे था तब पाप नगर से बाहर निकले भौर षष्ठ भक्त (दो उपवास की प्रतिज्ञा) पूर्वक प्रापने स्वय जैनेन्द्री दीक्षा धारण कर ली।
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दक्षा.कल्या
श्री ज्ञान मुनिजी महाराज