SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वस्तुत: महावीर घर छोडने का आग्रह नही कर रहे थे, न ही वे वाहर जाने के लिये पातुर हो रहे थे। वे तो केवल ममत्व का त्याग करना चाहते थे। घर मे रहने पर घर की ममता उभर सकती है, अत. वे ममता से मुक्त होना चाहते थे। ममत्व लुटने लगा महावीर की करुणा ने अब नया रूप धारण किया । वे जनता का भाव से ही नही द्रव्य से भी दारिद्रय दूर करने लगे। जिस धन पर जनता उनका ममत्व मानती थी, वे उसे दोनो हाथो से लुटाने लगे। ठीक ही था यह वितरण, क्योकि पानी बाढे नाव मे घर मे वाढ़े दाम । दोऊ हाथ उलीचिए, यही सुजन को काम ॥ कल्पसूत्रकार ने दान-राशि का हिसाव लगाया है और बताया है कि वे सूर्योदय से एक प्रहर दिन चढने तक एक करोड आठ लाख स्वर्ण-मुद्राए प्रतिदिन बाटा करते थे, इस प्रकार जनता के दारिद्रय-हरण की प्रक्रिया निरन्तर एक वर्ष तक चलती रही और वर्ष भर मे तीन अरब अठासी करोड अस्सी लाख स्वर्ण-मुद्राए राज्य-कोष में से उन लोगो के पास पहुच गई जिन्हे उनकी आवश्यकता थी । स्वेच्छा से सम्पत्ति का वितरण ही तो समाजवाद है। भगवान महावीर ने समता की दृष्टि के प्रयोगो द्वारा समाजवाद को जो क्रियात्मक रूप दिया वही तो वास्तविक समाजवाद है। भौतिकता प्राध्यात्मिकता के चरणों में झुक गई ___ भाई नन्दीवर्धन ने देखा कि महाबीर घर मे रहते हुए भी बाहर ही रहते है, क्योकि उनका घर मे अस्तित्व न होने जैसा होता है। घर के किसी कार्य से कोई वास्ता नही, किसी कार्य में कोई सलाह 'ही, अत उनकी ममता हार गई, वह महावीर की विरक्ति के चरणो पर झुक गई । भाई ने कहा-'वर्धमान | तुम महान् हो, विराट् हो। विराट को सकीर्ण-सीमाओ में वाधना कठिन ही नही असम्भव भी है, तुम्हारी विश्व-मगल की महती भावना को मैं बाधने में असमर्थ हूं, [ जन्म-कल्याणक
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy