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________________ उसी जीवन की एक भूमिका थी। अत. विवाह सम्पन्न हुआ। उनका विवाह कितने वर्ष की अवस्था मे हुया और उन्होने कितने वर्ष तक वैवाहिक जीवन व्यतीत किया, इसका लेखा-जोखा इतिहास के पर्दे के पीछे छिप चुका है, परन्तु दिगम्बर सम्प्रदाय आवश्यक नियुक्ति के 'कुमार-प्रवजित' शब्द के आधार पर उनके वैवाहिक जीवन से सहमत नहीं है, किन्तु कल्पमूत्रकार उनके वैवाहिक जीवन की स्पष्ट घोषणा करते है। ज्वालामुखी उफनने लगा महावीर के हृदय का वैराग्य अव वाहर आने लगा, ज्वाला-मुखी का लावा अन्दर ही अन्दर कब तक रह सकता था, फिर भी उन्होने माता-पिता से विरक्त जोवन मे जाने को पाना नही मागी, क्योकि वे गर्भस्थ-काल मे हो माता-पिता के रहते हुए प्रबजित जीवन न अपनाने की प्रतिज्ञा कर चुके थे, अत: उनके हृदय मे विरक्ति का लावा उफनता रहा, फिर भी उन्होने राज-महलो के जीवन का परित्याग नही किया वे रहते रहे घर मे ही, परन्तु अनासक्तभाव से, उदासीनवृत्ति से, समता पूर्वक । कमल पानी मे रहता रहे, पर पानी मे इतनी शक्ति कहा है कि वह उसका स्पर्श कर सके । महावीर घर में ही रहे, परन्तु घरेलू व्यवहारो से वे निलिप्त रहकर प्रतिक्षण ऊपर उठने का महाप्रयास निरन्तर करते रहे। मुक्ति-मार्ग खुलने की प्रतीक्षा में "आया है सो जायेगा, कौन सकेगा रोक ।" आखिर माता त्रिशला एव महाराज सिद्धार्थ ने व्रतोपवास पूर्वक शुभ भावना भाते हुए शरीर छोड़ दिया और चले गए उन देवलोको की ओर जहा वैठ कर वे अपने पुत्र के सुर-नर-वन्द्य तप.पूत अरिहन्त रूप के दर्शन कर सके। चिता शान्त : चित्त प्रशान्त चितानो पर चैत्य बन गए । नन्दीवर्वन ने पितृदायित्व सभाल लिये । महावीर ने भाई नन्दीवर्धन से कहा-'भैया मुझे आर्त मानवता पुकार रही है, त्याग और वैराग्य मेरी प्रतीक्षा कर रहे है, जबकि ३४] [जन्म-कल्याणक
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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