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________________ रखती है। लड़की के पिता भी पुत्री के लिये योग्य वर खोजते ही रहते हैं । माता त्रिशला का मन अव पुत्र-वधू लाने के लिये लालायित हो उठा और दूसरी ओर साकेत-नरेश महाराज समरवीर अपनी सर्वाङ्गः सुन्दरी पुत्री यशोदा के लिये सुन्दर वर की तलाश कर ही रहे थे। माता त्रिशला की अभिलाषा और यशोदा का सौभाग्य परस्पर मिल गए और विवाह की तैयारिया होने लगी। वर्धमान महावीर के सामने विवाह का प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ, वे विचार मे पड़ गए चिन्तन के सागर मे डूब गए। वे अपना लक्ष्य जानते थे। माता त्रिशला के स्वप्नो के माध्यम से सिद्धार्थ भी जानते थे कि 'निर्धूम अग्नि के रूप मे दिखी तप की अग्नि मे अपने जीवन की आहुति डाले विना वर्धमान नहीं रह सकते, परन्तु उन्होने महारानी त्रिशला का मन रखा और विवाह की तैयारिया करने लगे। महावीर माता-पिता की आज्ञा के विरुद्ध चल कर अपने क्षत्रियत्व की परम्परा को दूषित न करना चाहते थे। उन्हे कर्म-विधान की अटलता का भी पूर्ण ज्ञान था, यशोदा के संग रह कर कुछ कर्मों का भुगतान भी उन्हे करना ही था और एक तीसरा कारण भी था, महावीर सहज जीवन के अभ्यासी थे, वे लडना एव विरोध करना नही जानते थे, इसी कारण उन्होने विवाह का भी विरोध न किया। विवाह प्रकृति है, प्रकृति का विरोध विकृति है और प्रकृति एव विकृति से निर्विरोध ऊपर उठना सस्कृति है। महावीर सस्कृति के उन्नायक बन कर आए थे, वे नाना प्रकार के विकारो की राख मे दवी सस्कृति के महानतम उज्ज्वल रूप को प्रकट करना चाहते थे, अत उन्होने विवाह का भी विरोध नहीं किया। विरोध का अर्थ है प्रेम एव आसक्ति, क्योकि आसक्ति और विरोध एक ही लाठी के दो सिरे है । एक सिरे वाली लाठी होती ही नही, अत: विरोध के पीछे आसक्ति रहती ही है। महावीर आसक्ति और विरक्ति किसी का विरोध नहीं करना चाहते थे, अत उन्होने विवाह का भी विरोध नही किया। फिर विवाह श्रावक जीवन का ही एक अग है, जिस महान विरक्त जीवन के लिये वे अपने आपको प्रस्तुत कर रहे थे, उसके लिये देशविरक्तित्व की भूमिका भी प्रस्तुत होनी ही चाहिए थी, उनका विवाह पञ्चकल्याणक] [३३
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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