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________________ कि मुन्दर धर्म भाव (मोधर्म) की दिव्य ज्योति (इन्द्र) अपनी म शक्ति के साथ ग्राई, उमन महावीर को मेयंत पर बिठाया प्रर्यान सुस्थिरता प्रदान की। अभिपका उनकी जन्म-जात पाबननाएवं मानसिक विगुद्धि का परिचय दे रहा है। इन्द्र के द्वारा पांच रूप धारण करके भगवान को उठाना भी इमी पोर सकेत करता है कि इस घमंज्योति ने पत्र परमेली यो पाराधना करनी है, अहिंमा ग्रादि पांच महाधर्मों का उन्नयन करना है। साथ ही महावीर के द्वारा प्रगूठे में मेग को गम्पित करने का अर्थ है मेर हिल सकता है, धरती काप नकती है, परन्तु महावीर अपनी दृढता से विचलित नही हो सकते । भगवान की इसी ना को देखकर इन्द्र ने उनको 'महावीर' कहा था। इस प्रकार कल्पसूत्र में वर्णित क्षत्रिय कुण्डग्राम का महोत्सव उपर्युक्त देवी समृद्धियो की ही सूचना देता है । नामकरण संस्कार के समय महाराज सिद्धार्य ने कहा इन वालक के जन्म की सम्भावना वाले दिन से ही राज्य में सुख-समृद्धि, वातावरण की पावनता, मानमिक भावो मे पवित्रता एवं सर्वत्र मनोनुकूलता वढ रही है, अतः इस बालक का नाम 'वर्षमान' रला जाए। इस प्रकार 'महावीर' और वर्धमान ये दोनो नाम उन्हें प्राप्त हुए। माता की गोद भर गई, वर्धमान बढने लगे और साथ ही धन से भण्डार भरने लगे, जलाशय वढने लगे, खेतिया लहनहाने लगी, नैरोग्य सवृद्ध होने लगा, चारो ओर मुभिक्ष छा गया। वर्धमान की बाल-तेजस्विता, उनके पैर पर शेर का चिह्न, उनकी प्रखर बुद्धि, उनकी जन्मजात ज्ञान-गरिमा उनके शैशव में ही अकुरित विरक्ति की भावनाए, उनको सहिष्णुता, उनकी प्राणिमात्र के प्रति करुणा को देखकर सवका अनुमान यही कहता था 'वर्धमान' इस युग का तेजस्वी महापुरुप बनेगा । उनका जीवन मानो धर्म का उन्मुक्त १. पच सक्करूवे विउव्वइ । कल्पसूत्र २. सिरि महावीरेति नाम कय । कल्पसूत्र २८] [जन्म-कल्याणक
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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