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________________ प्रमुख थे महाराज चेटक । उन्ही की वहिन थी त्रिशला, जिसे वे प्यार से "प्रियकारिणी" भी कहते थे। प्रियकारिणी त्रिशला मे एक आदर्श भारतीय नारी के सभी गुण विद्यमान थे, वह तपस्विनी धर्मप्रिया नारी थी उसकी गुण-गरिमा से वैशाली धन्य थी। प्रियकारिणी त्रिशला का विवाह ज्ञातृगण के प्रमुख महाराज सिद्धार्थ से हुआ था और भगवान महावीर के जन्म से पूर्व माता त्रिशला नन्दीवर्धन नामक गुणवान पुत्र एव सुदर्शना नामक गुणवती कन्या को जन्म दे चुकी थी। उसकी दिनचर्या का वर्णन करते हुए कल्प सूत्र मे कहा गया है "वह त्रिकाल सामायिक और दोनो कालो मे आवश्यक क्रिया करती थी, दीन-हीन-जन-उपकारिणी, पतिव्रता, धर्म-विमुखो मे धर्म का प्रसार करनेवाली, गुरु-वाक्यो पर श्रद्धा रखनेवाली, प्रियधर्मा और दृढधर्मा थी तथा करुणा के कवच से अन्तःकरण की एव धर्म की रक्षा करनेवाली थी।" महाराज सिद्धार्थ और माता त्रिशला भगवान् पार्श्वनाथ के उपासक और श्रमण-सस्कृति के अनुयायी थे।' इतना ही नही वैशाली मे जैनधर्म का एक-छत्र राज्य था, अर्थात् सव लोग जैन-धर्म के अनुयायी थे। ऐसा प्रतीत होता है कि जैनधर्म वैशाली गण-राज्य का राजधर्म था। इस प्रकार नौ मास सात दिन बाद वैशाली का विशाल प्राङ्गण महावीर के पुनीत चरणो का पावन स्पर्श पाकर पावनता से परिपूर्ण हो उठा, मां त्रिशला के सभी शल्य शान्त हो गए, पिता सिद्धार्थ के सभी अर्थ सिद्ध हो गए । भाई नन्दीवर्धन के सवर्धनार्थ सभी साधन समृद्ध हो गए, भारतवर्ष उन विलक्षण सरक्षणशील क्षणो का आभारी है जिन्होने धरती को तरणतारणहार तीर्थङ्कर का वरदान दिया, धरती को तीर्थङ्कर की धरती होने का सौभाग्य प्रदान किया और भारत को भाग्यवान किया। १. देखिये कल्पसून द्वितीय वाचना। २. महावीरस्स अम्मापियरो पासावच्चिज्जा (प्राचाराङ्ग) ३ एगायपत्तायमाण-पारहयधम्मो तत्थ णगरे । (कल्पसूत्र) पञ्च-कल्याणक ] [ २५
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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