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उत्सव बन कर आते हैं इसीलिये यहा जन्मोत्सव मनाए जाते हैं, परन्तु भगवान महावीर की दृष्टि में जन्म का कोई महत्व नहीं, क्योकि जन्म तो मृत्यु का कारण है। जन्म लेने वाले को मृत्यु की शरण में अवश्य जाना पड़ता है और मृत्यु मनुष्य का जन्म के लिये ढकेलती रहती है । इस प्रकार जन्म और मृत्यु का बल युग-युगान्तरी मे बल रहा है। भगवान महावीर इस रोल में सन्तुष्ट न थे। इसलिये वे प्रव इस खेल को समाप्त करना चाहते थे, परन्तु इस खेल की समाप्ति के लिये जन्म लेना अनिवार्य था।
____ इसीलिये उन्हे जगज्जननी त्रिशला के गर्भ से जन्म लेना पड़ा, परन्तु मृत्यु पर विजय पाने के लिये, जन्म मरण की कीड़ा को सदा के लिये समाप्त करना ही उनके जन्म का लक्ष्य था, इसो लक्ष्य की पूर्ति के लिये उन्होने वैशाली में जन्म लिया।
वैशाली विहार प्रान्त मे वर्तमान मुजफ्फरपुर जिले की गण्डक नदी के तट पर बसा एक महानगर था, आजकल उसके खटहरो पर वसा एक छोटा सा ग्राम है 'बेसाह पट्टी।' इसको दूरी पटना से लगभग २७ मील है।
जन्म-कल्याणक का समय यह तो सर्वमान्य है कि भगवान म विीर के चरणो ने पहली बार चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन ही इस धरा को पावन किया था, किन्तु उनके जन्म-सम्बत् के विषय मे अनेक मान्यताओं के कारण कुछ मतभेद हो जाता है, परन्तु अब प्राय: विद्वानो ने एक मत होकर यह स्वीकार कर लिया है कि उनका जन्म ई० पू० ५९८ मे हुना था। इसका अाधार श्री हेमचन्द्राचार्य जी का परिशिष्ट पर्व है। डा0 ग्राकोबी और शान्टियर आदि विद्वानो ने भी उनका यही जन्म सम्वत् स्वीकार किया है। आजकल १९७४ ईसवी सन् है । इसमें उनका निर्वाण-वर्ष ई० पू० ५२६ जोड़ने पर ही २५०० सौवी निर्वाणशतीइस वर्ष में मनाई जा रही है । इसमे जीवनकाल के ७२ वर्प और जोडने पर उनका जन्म ई० पू० ५६८ स्वीकार करना पड़ता है।
माता को धन्यता पिता की सिद्धार्थता वैशाली लिच्छवियो का महान गणतन्त्र राज्य था । इस राज्य के
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[ जन्म-कल्याणक