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महावीर : भावी शिशु देव-विमानो को ठुकराकर देव-विमानो की
पहुच मे भी दूर सिद्धालय की ऊचाइयो पर पहुचनेवाला होगा।
१३ रत्न-राशि माता विशला : मेरा पुत्र पृथ्वी का एक रत्न हो । __ महावीर : भावी शिशु रत्नत्रय का पारावक हो नही, उस पर
सर्वतोभावेन अधिकार करनेवाला होगा ।
१४. नि— म अग्नि-शिखा माता त्रिशला : मेरा शिशु सभी प्रकार के दुर्गुणो से मुक्त हो । महावीर : भावी गिनु तेजस्वी होगा, परन्तु उसका तेज संसार
की आखे खोलनेवाला होगा, वह सव तरह के पाखण्डो
से रहित होगा। इस प्रकार ये १४ स्वप्न अपने प्रतीकात्मक रूपो मे माता त्रिगला की मानसिक स्थिति, विचार-रागि और अभिलापामो के परिचायक हैं और भगवान महावीर के भावी जीवन के द्योतक भी ।
जैन-आगमो के अनुसार सभी तीर्थङ्कर पाच ज्ञानो-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:-पर्यवज्ञान और केवलज्ञान के धारक होते हैं। गर्भावस्था मे उन्हें तीन ज्ञान होते है-मति-ज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान । ये ज्ञान पूर्व जन्मो की साधना से एव कर्मों का क्षयोपशम होने से हुआ करते हैं।
महापुरुषो का अवतरण वसुधा के लिये महान पुण्य का कार्य होता है। महावीर के त्रिशला माता के गर्भ मे आते ही सव ओर मागलिक दातावरण छा गया, देश के कण-कण मे हर्षोल्लास उमड़ पड़ा । पत्तीपत्ती एव डाली-डाली पर एक नई बहार आ गई। राजा सिद्धार्थ के राज्य-कोप की वृद्धि होने लगी । सिद्धार्थ के शत्रु भी उनके आगे नतमस्तक होने लगे । सभी प्रकार की समृद्धिया उनके चरणो मे लोटने लगी। जीवो ने अपना-अपना सहज वैर विसरा दिया, मानो वे कभी किसी के शत्रुथे ही नही । अपने कोष की वृद्धि और सब प्रकार की समृद्धि देखकर
वन-कल्याणक