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की कोई सीमा नही, अत स्वप्न अतीत के परिचायक भी होते हैं, वर्तमान के प्रतिविम्ब भी होते है और भविष्य की सूचना देनेवाले भी होते हैं।
भारतीय स्वप्न-विज्ञान स्वप्न को प्रतीकात्मक मानता है और मानव-प्रकृति का परिचायक भी। आयुर्वेद के ग्रन्थो मे बताया गया है कि 'स्वप्न मे ऊंची उडाने भरनेवाले व्यक्ति वायु-प्रकृति के होते हैं।' इसका अभिप्राय है कि उड़ान के स्वप्न द्वारा वायु-प्रकृति का परिज्ञान होता है।
स्वप्न चित्त की अवस्था पर निर्भर करते हैं। भगवान महावीर ने साढे बारह वर्ष तक तप करके जिस मानसिक पवित्रता और आध्यात्मिक शक्तियो का विकास कर लिया था उनके स्वप्न उसी के प्रतीक थे।
इन प्रतीकों का आधार भी हमारी जीवन-पद्धति है, हमारे जीवन के अनुरूप स्वप्न-प्रतीक अपना फल दिखलाया करते हैं । एक डाकू द्वारा स्वप्न मे देखा गया सिंह और अर्थ देता है तथा एक महापुरुष द्वारा स्वप्न मे दृष्ट सिंह का अर्थ कुछ और हुआ करता है। अत प्रतीको के निर्माण मे हमारी सामाजिक दशा, पारिवारिक स्थिति, नैतिक मान्यताओं आदि का बड़ा महत्त्व होता है। इसीलिये अक्सर कामी प्रकृति के मनुष्य ही स्वप्नदोष जैसे मानसिक रोगो के शिकार होते हैं ।
भगवान महावीर की माता त्रिशला ने एक ही रात मे १४ स्वप्न देखे । यह चौदह स्वप्न माता त्रिशला के मन की विशिष्ट अवस्था का एव उसकी अभिलाषायो का तथा गर्भ मे आनेवाले जीव के भावी जीवन का परिचय देनेवाले हैं।
आजकल के स्वप्नशास्त्री विभिन्न व्यक्तियो द्वारा देखे गए एक जैसे स्वप्नो का अध्ययन करते हैं, उनकी तुलना करते हैं, तब उसका निष्कर्ष निकालते है । जैन परम्परा के विद्वानो ने चौबीस तीर्थङ्करों की माताओ द्वारा देखे गए समान स्वप्नो का अध्ययन करके ही यह निष्कर्ष निकाला है कि इस प्रकार के स्वप्न देखनेवाली माताए पञ्चकल्याणक]
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