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________________ यद्यपि इन चौदह मगल पदार्थों के दर्शन देवानन्दा ने भी किये थे और उसे भी उनका यही फल मिलना चाहिए था जो माता त्रिशला को प्राप्त हुग्रा परन्तु शास्त्रकार कहते हैं कि गर्भ-हरण होते ही देवानन्दा ने यह भी स्वप्न देखा था कि मुझे स्वप्नो का जो फल प्राप्त होने वाला था वह अव महारानी त्रिशला को प्राप्त होगा। स्वप्न मानव-जीवन का अनिवार्य अग हैं। प्राचीन काल में इस विषय पर अनेक ग्रन्थ लिखे गए है और आधुनिक मनोविज्ञानवेत्ता भी इस दिशा मे प्रयत्नगोल हैं, जिनमे फ्रायड, एडलर, युग, डेलेग आदि विद्वान् प्रमुख हैं। फ्रायड का कथन है कि स्वप्न-अतीत की घटनाओं के प्रतीक होते हैं। एडलर स्वप्न को वर्तमान जीवन को समस्याओ का प्रतिविम्ब कहते है। युग महोदय स्वप्न को अतीत के अनुभवो का अनुकरण मानते हैं। डेलेग महोदय की मान्यता है कि स्वप्न मे हमारे जीवन के असामजस्य की पूर्ति होती है । यद्यपि वर्तमान स्वप्न-शास्त्रियो की मान्यताए भिन्न-भिन्न हैं, परन्तु इन सब मान्यताप्रो के इस साराश को अस्वीकृत नही किया जा सकता कि स्वप्न हमारी मानसिक दशा का परिचय देते है स्वप्न हमारे मानसिक जगत के अध्ययन की ऐसी पुस्तक हैं जिसे हम सोकर ही पढ़ सकते है, जागृत अवस्था में नहीं। भूत वर्तमान और भविष्यत् की कोई सीमा नही, जो भूत है वही तो वर्तमान है । एक विद्यार्थी पढ़ रहा है, विगत दस वर्षों से पढ रहा है । वह आज से दस वर्ष पूर्व भी वर्तमान कालिक क्रिया का प्रयोग करते हुए कहता था-'मै पढ रहा हूं' वह आज भी कहता है 'मैं पढ रहा हूं और यदि वह दस वर्ष और पढता रहा तो वह पाच वर्ष बाद भी वर्तमान कालिक क्रिया का प्रयोग करता हुआ कहेगा "मैं पढ रहा हूँ' 1 निष्कर्ष यह कि भूत भविष्यत और वर्तमान १२] [ च्यवन-कल्याणक
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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