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________________ लक्ष्य में रखकर यह भी कहा जा सकता है कि ब्राह्मण जाति के धर्मबल, देवताओ के आनन्द, सुन्दर एव वास्तविक धर्मांचरण करनेवाले महापुरुषो की श्रेष्ठता एव दैवी शक्तियो द्वारा सेवा करवाने की समस्त शक्तियो ने सम्मिलित रूप मे पुण्यशीला माता त्रिशला के गर्भ से वर्धमान के रूप मे जन्म लिया । जिस रात्रि को भगवान महावीर देवानन्दा की कुक्षि से त्रिशला रानी की कुक्षि में पधारे उस समय अर्द्धनिद्रित अवस्था मे सोई हुई माता त्रिगला ने चौदह प्रधान स्वप्नो को देखा । प्रभात होते ही रानी त्रिशला ने राजा सिद्धार्थ को उन चौदह स्वप्नो का विवरण दिया। राजा सिद्धार्थ ने स्वप्न-शास्त्रियो को अपने राज-प्रासाद मे वुलवाया। उन्हें यथायोग्य सम्मान देकर राजा सिद्धार्थ बोले कि 'रात्री के तीसरे प्रहर मे महारानी त्रिशला ने अमुक-अमुक चौदह स्वप्न देखे है । आप अपने अनुभूत ज्ञान से इनका फल कहिए । यह बात सुनकर -स्वप्नशास्त्री बोले-'हे देवानुप्रिय ! महारानी त्रिशला ने जो चौदह स्वप्न देखे हैं वे प्रशस्त और कल्याणकारी हैं। इनमे आपको सर्वोत्तम अर्थ, पुत्र, सुख और राज्य की प्राप्ति होगी और महारानी त्रिशला एक कुल-ध्वज कुलदीपक, कुल-द्योतक, कुल-मुकुट और कुल परम्परा-वर्द्धक बहुत ही शीलवान् तथा देदीप्यमान तीर्थकर पद प्राप्त करने योग्य पुत्र को जन्म देगी। इस प्रकार स्वप्न-शास्त्रियो ने भावी शिशु की महामहिमाशालिनी प्रभुता का परिचय दिया, तत्पश्चात् उन स्वप्न-शास्त्रियो को बहुत सम्पत्ति देकर राजा सिद्धार्थ ने महती कृतज्ञता से विदा किया। जैन कथा-साहित्य मे महापुरुपो के जन्म से पूर्व प्राय: १४ स्वप्न देखने की बात अवश्य कही जाती है। भगवान महावीर के अवतरण से पूर्व माता देवानन्दा ने तदनन्तर महामहिमाशालिनी माता त्रिशला ने स्वप्न मे क्रमशः चौदह पदार्थ देखे थे १ श्वत हाथी २ सफेद वैल ३ सिंह ४ लक्ष्मी ५ पुष्पमाला ६ चन्द्र ७. सूर्य ८ ध्वजा ६ पूर्ण कलश १० पद्म-सरोवर ११ क्षीर-ससुद्र १२ देव-विमान १३. रत्न-राशि १४ निर्धू म अग्नि । पञ्चकल्याणक] [११
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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