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रोहिणी के गर्भ मे स्थापित कर दिया था ?'
इस प्रकार इन दोनों परम्पराग्रो मे गर्भ-परिवर्तन की स्थिति स्पष्ट एव समान है । इस विषय पर थी तिलकधर शास्त्री के निम्नलिखित विचार मननीय हैं।
भगवान महावीर का जीव उस समय तीर्य कर वन कर आया । तीर्थ का अर्थ है-पार करने का स्थान या पार होने का स्थान । पार करना
और बात है, पार होने की विद्या मिखला देना और बात है। नीर्थकर किसी को पार नहीं करते बल्कि पार होने की विद्या सिखलाते हैं । आज तक दुखो से पार करने को विद्या के ठेकेदार ब्राह्मण ही समझे जाते थे, परन्तु भगवान महावीर ने जन्म लेकर केवल दुग्यो से ही नही, दुखो की मूल विषयासक्ति से एव ससार-सागर से पार करने का मार्ग दिखला कर 'तीर्थकर' पद प्राप्त किया, अर्थात् ब्राह्मणत्व को जीतकर, विषयवासनायो को जीत कर, देवो को जीतकर, जिनेश्वर कहलानेवाले भगवान महावीर ने क्षत्रिय होते हुए भी ब्राह्मणत्व को प्राप्त कर लिया । मैं समझता हू, ब्राह्मणी के गर्भ से क्षत्राणी के गर्भ मे आने का यही अभिप्राय है जिसे शास्त्रकारो ने अपनी कथा-गली मे गर्भ-परिवर्तन की घटना के रूप मे उपस्थित किया है।
यहा एक विषय और भी विचारणीय है कि भगवान महावीर के ब्राह्मण पिता का नाम 'ऋषभ' बताया गया है और माता का नाम देवानन्दा है। गर्भ-परिवर्तन करानेवाले 'सौधर्मेन्द्र' है और कार्य करनेवाले 'हरिनगमेषी' हैं। ऋपभ का अर्थ वैल है जो एक ओर तो शक्ति का प्रतीक माना गया है और दूसरी ओर उसे धर्म का प्रतीक स्वीकार किया जाता है । देवानन्दा शब्द दैवी प्रानन्द का प्रतीक है। सौधर्मेन्द्र शब्द का अर्थ भी सुन्दर धर्मोपासको मे श्रेष्ठ इन्द्र होता है । हरिनैगमेषी का अर्थ इन्द्र-मेवक होता है। इन प्रतीकात्मक नामो को
, १- शेपाश: सप्तमस्तन देवकीगर्भसस्थित. ।
विवसितश्च गर्भोऽसौ योगेन योगमायया। नीतश्च रोहिणीगर्ने, कृत्वा संकर्षण बलात् ।
-श्री श्रीमद्देवी भागवत ४-२२-२३
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[च्यवन-कल्याणक