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पडा। यह एक प्रकार की अनन्त काल के बाद होनेवाली अनहोनी बान थी, जिसे जैन धर्म मे 'अच्छेरा' कहा जाता है। ___ जब महावीर का जीव देवानन्दा के गर्भ मे अवतरित हुआ तब देवानन्दा ने जो चौदह स्वप्न देखे थे वे हैं-हाथी, बैल, सिंह, लक्ष्मी, फूलो की माला, चन्द्र, ध्वजा, कुम्भ, पद्म, सागर, विमान, भवन, रत्नो का ढेर और अग्नि-शिखा । इस प्रकार के कल्याणकारी और मगलमय स्वप्न देखकर देवानन्दा जाग उठी और उसने अपने पति ऋषभदत्त के समक्ष इन स्वप्नो की चर्चा की।
इन स्वप्नो की चर्चा सुनकर ऋषभदत्त ने बताया कि गर्भिणी स्त्री द्वारा इस प्रकार के स्वप्न देखने का फल यह होता है कि उसके गर्भ से किसी मङ्गलमय महापुरुष का जन्म होता है।
कहा जाता है कि ईसा से लगभग छ• सौ वर्ष पूर्व आषाढ शुक्ला षष्ठी को वैशाली के उपनगर ब्राह्मण कुण्डपुर के ऋपभदत्त ब्राह्मण की पत्नी देवानन्दा ने जो गर्भ धारण किया उसमे भगवान महावीर के जीव ने प्रवेश किया था, किन्तु सौधर्मेन्द्र नामक इन्द्र ने हरिणगमेषी नामक देवता के द्वारा देवानन्दा के पुत्ररूप गर्भ को महाराज सिद्धार्थ की पत्नी महारानी त्रिशला के गर्भ मे पहुचवा दिया।
आधुनिक वैज्ञानिक युग मे गर्भ-परिवर्तन की बात कुछ उपहासास्पद सी प्रतीत होती है, किन्तु देवताओ मे अद्भुत शक्ति होती है, वे अवधि-ज्ञान के धारक होने के नाते सभी कार्य बडी सुगमता से कर सकते है । जैन आगमों मे देवताओ की असख्य शक्तियो का वर्णन मिलता है । अल्पज्ञ मानव तो उनकी शक्ति की कल्पना भी नही कर सकता। वैज्ञानिक युग मे तो गर्भ-परिवर्तन साधारण सी वात प्रतीत होती है। यदि देवताओ के इस कृत्य को वैज्ञानिक ही मान लिया जाय तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी।
वैदिक परम्परा मे भी गर्भ-परिवर्तन की घटना मिलती है। कस माता देवकी के गर्भ से उत्पन्न बालको की हत्या कर देता था। देवमाया ने माता देवकी के गर्भ मे स्थित शेष के अवतार सातवे पुत्र बलराम को योग-शक्ति के द्वारा बलात् सकर्षण (खीचकर) करके
पञ्चकल्याणक ]