SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकार कर्म-युक्त जीव भी अनेक मुभ-अशुभ गतियो की ओर स्वत. खिचते चले जाते है। जैन दर्शन की भाति पुनर्जन्म को वैदिक परम्परा मे भी स्वीकार किया गया है । जैन धर्म मे पुनर्जन्म का कारण मानव द्वारा कृत कर्म हैं जो कार्मण शरीर की रचना करते हैं । वैदिक परम्परा मे पुनर्जन्म का कारण एक सूक्ष्म शरीर है । यह सूक्ष्म शरीर ही गमनागमन के समय कर्मों का समुदाय अपने साथ लेकर जाता है । जीवात्मा जब अपने पूर्व स्थूल शरीर को छोडकर नये स्थूल शरीर में प्रवेश करता है तव वह सूक्ष्म शरीर के रूप मे ही जाता है। वैदिक परम्परा की यह मान्यता कुछ सूक्ष्म अन्तर के साथ जैन-मान्यता का ही समर्थन करती है। आधुनिक काल के प्रसिद्ध पाश्चात्य दार्शनिको ने भी पुनर्जन्म की स्पष्ट घोषणा की है । वाल्ट बिटमैन ने स्पष्ट लिखा है कि 'जीवन' । तुम मेरे अनेक अवसानो के अवशेप हो । इस मे कोई सन्देह नही कि मैं इसके पूर्व दस हजार वार मर चुका है। प्राध्यापक हक्सले (Prof Huxly) का कथन है-केवल विना ठीक से सोचे समझे निर्णय लेने वाले विचारक ही पुनर्जन्म के सिद्धान्त को मूर्खता की वात समझकर इसका विरोध करेगे । देहान्तरवाद का सिद्धात वास्तविकता के सुदृढ धरातल पर टिका हुआ है। १-सभुवि तभुवि कम्मायतउ कम्मविवाउ लोइ बलवतउ । लोहु व कदएण कढदिज्जए जीव सकम्मि चउगइ णिज्जइ ।। (जसहर-चरिउ) २- "उक्तलक्षण प्राणादिमाजीवो हि सूक्ष्मभूतम्परिवृत. एव देह विहाय देहान्तर गच्छति"। (व० भू० ३-१-१ की परिजात सौरभ) 3- As to you, life I reckon you are the leavings of many deaths. No doubt I have died myself ten thousand times before (Walt Whitman) पञ्चकल्याणक )
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy