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________________ इस प्रकार के विशेष मंगलकारी पाच उत्सव हैं-तीर्थङ्कर-पद प्राप्त करनेवाली दिव्य आत्मा का धरती पर जन्म के लिये अवतरण, जिसे च्यवन-कल्याणक कहा जाता है, जन्म-कल्याणक, दीक्षा-कल्याणक, केवलज्ञान-कल्याणक, और निर्वाण-कल्याणक । भगवान महावीर का च्यवन-कल्याणक 'च्यवन' का अर्थ है -ऊर्ध्वस्थित देवलोको ने धरती पर अवतीर्ण होना, अर्थात् भावी तीर्थकुर के जीव की माता के गर्भ में प्रवेश की कल्याणकारी घटना को 'च्यवन-कल्याणक' कहा गया है। तीर्थकर के रूप मे अवतरित होने से पूर्व दिव्य आत्माए अनेक साधनाए करती हुई अपने आपको शुद्ध पवित्र एव श्रद्धामय बना देती हैं, परिणाम स्वरूप वे आत्माए तीर्थङ्कर बनने की योग्यता प्राप्त कर लेती है। जैन परिभाषा मे उसे 'तीर्थङ्कर-गोत्र का उपार्जन करना कहा जाता है। भगवान महावीर के जीवात्मा ने भी अनेक पूर्व जन्मो मे शुभ कर्मों का उपार्जन किया, तथा कर्मो के क्षयोपशम से तीर्थकर गोत्र बांधा और प्राणत देवलोक से अवतीर्ण हो कर माता त्रिशला के गर्भ मे निवास किया। आज के वैज्ञानिक युग में पुनर्जन्म और परलोक की वात उपहासास्पद सी प्रतीत होती है. परन्तु हमे यह जानना चाहिए कि यह विषय भौतिक विज्ञान का नही, अव्यात्म-विज्ञान का है। भारत के प्राय सभी दार्गनिको ने (चार्वाक दर्शन को छोड़कर) आत्मा के अस्तित्व और पुनर्जन्म के सिद्धान्त को स्वीकार किया है। जैन दर्शन ने चार ध्रुव सिद्धात स्वीकार किए हैं--प्रात्मवाद, लोकवाद, कर्मवाद और क्रियावाद । जैन धर्म द्वारा आत्मा को स्वीकृति के कारण कर्म, उसके शुभाशुभ परिणामो तथा उन परिणामो से होनेवाले अनेक जन्मो की सिद्धि की स्वीकृति भी स्वत ही हो जाती है । जैन दर्शन की मान्यता है कि यह लोक नाना प्रकार की कर्मवर्गणायो के समूहो से भरा पड़ा है। जब भी कोई जीव गंग-द्वेष-जन्य क्रियायो के वशीभूत होता है, तभी कर्म-समूह आत्मा के साथ जुड़ने लगते है और कर्म तथा आत्मा का यह सम्बन्ध ही जन्म का कारण बन जाता है। जिस प्रकार चुम्वक लोहे को अपनी ओर आकर्षित करता है उसी [ च्यवन कल्याणक
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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