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नमोत्युण समणस्स भगवो महावीरस्स -
च्यवन-कल्याक
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'कल्याणक' शब्द तीर्थङ्कर के जीवन मे आनेवाले मगलमय अवसरो से सम्बद्ध है। वैसे तो महापुरुषो के जीवन का प्रत्येक क्षण ही कल्याणकारी होता है, परन्तु जैन सस्कृति मे तीर्थकरो (महापुरुषो) के जीवन में आनेवाले मगलमय पाच अवसरो को 'कल्याणक' कहा गया है। इस दृष्टि से 'कल्याणक' शब्द जैन-धर्म का पारिभाषिक शब्द बन गया है। शास्त्रकार कल्याणक की व्याख्या करते हुए कहते है :(क) यह वह मगलमय अवसर होता है जिसमे महा साधक अपना
कल्याण तो करता ही है, साथ ही उसके द्वारा अनन्त जीवो के
कल्याण का उपक्रम भी आरम्भ हो जाता है। (ख) इस मंगलमय पुण्योत्सव मे देव, मनुष्य और विकासोन्मुख अन्य
जीव भी सम्मिलित होते है। ऐसी मान्यता है कि तीर्थकरो के
जन्मादि के ममय इन्द्रादि देव मिलकर उत्सव करते है। (ग) इस मगलमय अवसर पर कुछ समय के लिये नरकवासी जीव
भी सुख की सास लेते है । (घ) इस पुण्य अवसर के आने पर तीनो लोको के भव्य प्राणियो
के हृदय मे अनायास ही हर्प हिलोरें लेने लगता है। (ड) कल्याणक वेला मे सर्वत्र सुख और शाति का प्रसार हो जाता
है। सब के हृदयो मे अनायास ही पुण्य-प्रकृतियो का उदय हो जाता है, समस्त वातावरण मे दिव्य सौन्दर्य भर जाता है।
पञ्चकल्याणक ]