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श्रमण भगवान के सभी गणधरों मे से सुधर्मा स्वामी दीर्घजीवी थे, अत' अन्य गणंधरों ने अपने अपने निर्वाण के समय अपने-अपने गण सुधर्मा स्वामी को समर्पित कर दिये थे।
महावीर-निर्वाण के १२ वर्ष बाद सुधर्मा जी को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ और वीस वर्ष के पश्चात सौ वर्ष की अवस्था मे उन्होने मासिक अनशन पूर्वक राजगृह के गुणशील चैत्य मे निर्वाण प्राप्त किया। ६. मण्डिक
मण्डिक मौर्यसनिवेश के रहनेवाले वशिष्ठ गोत्रीय ब्राह्मण थे । इनके पिता का नाम धनदेव और माता का नाम विजयादेवी था। इन्होने तीन सौ पचास छात्रो के साथ त्रेपन वर्ष की अवस्था मे प्रवज्या ली और सतसठ (६७) वर्ष की अवस्था मे केवलज्ञान प्राप्त किया। तिरासी वर्ष की अवस्था मे गुणशील चैत्य मे निर्वाण को प्राप्त हुए। ७. मौर्यपुत्र
ये कश्यप गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम मौर्य और माता का नाम विजयादेवी था। ये मौर्यसनिवेश के निवासी थे। तीन सौ पचास छात्रो के साथ त्रेपन वर्ष की अवस्था में दीक्षा ली। उनासी वर्ष की अवस्था मे वेवलज्ञान प्राप्त किया और भगवान महावीर के जीवन के अन्तिम वर्ष मे तिरामी (८३) वर्ष की अवस्था मे मासिक अनशन पूर्वक राजगृह के गुणशील चैत्य मे निर्वाण प्राप्त किया। ८ अकम्पित
ये मिथिला के रहनेवाले गौतम गोत्रीय ब्राह्मण थे, इनके पिता देव और माता जयन्ती थी। तीन सौ छात्रो के साथ अठतालीस वर्ष की अवस्था मे दीक्षा ली। सत्तावन वर्ष की अवस्था मे केवलज्ञान प्राप्त किया और भगवान महावीर के जीवन के अन्तिम वर्ष मे अठासी वर्ष की अवस्था मे राजगृह के गुणशील चैत्य मे निर्वाण प्राप्त किया।
६. अचलभ्राता
ये कौशला ग्राम के निवासी हारीत गोत्रीय ब्राह्मण थे। आपके
पञ्च-कल्याणक]
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