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________________ विभक्त कर दी। ये ११ गणधर अपने-अपने गण के अन्तर्गत सावुनो को शास्त्र-वाचना देते थे, उन्हे प्रवचन-कुशल एव चारित्र मे मुदृढ बनाते -थे, किन्तु इन सब का मुख्य सचालन-मूत्र भगवान महावीर के पट्ट शिष्य गणधर इन्द्रभूति गौतम के हाथो में था। तात्पर्य यह है कि भगवान महावीर ने चतुर्विध संघ की स्थापना करके इन्द्र भूति आदि गणधरो को 'उप्पन्नेई वा, विगमेई वा, धुवेई वा' (उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य) यह त्रिपदी प्रदान की। इसी त्रिपदी के आधार पर गणवरों ने द्वादशाग गणिपिटक की रचना की, जिसमे तत्त्वज्ञान, आचारसहिता, सिद्धान्तबोध, व्यावहारिक ज्ञान नीति का प्रतिपादन, प्रमाण, प्रमाण-नय, निक्षेप, अनेकान्तवाद स्याहाद आदि का स्पष्ट मार्ग-दर्शन था । इस गणिपिटक के आधार पर ही विभिन्न गणो के साधुओ को वाचना दी जाती थी। सारे भिक्षु-मघ को इन ग्यारह गणधरो के नौ गणो मे विभक्त कर दिया गया था। प्रथम सात गणधरो की सात वाचनाएं थी। अकम्पित और अचलभ्राता दोनो गणवरो की समान वाचना होने से दोनो का एक गण हुमा तथा मैतार्य और प्रभास गणधर की भी एक सी वाचना होने से इन दोनो का गण भी एक ही हुया । इस प्रकार वाचना की दृष्टि से नौं गण हुए। किन्तु भगवान महावीर के निर्वाण से पहले ही इन ग्यारह गणधरो मे से इन्द्रभूति और सुधर्मा स्वामी को छोड़ कर बाकी के नौ गणधर निर्वाण प्राप्त कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो चुके थे और इन्द्रभूति गौतम को भी जिस रात्रि मे भगवान् महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ उसी रात्रि के अन्तिम प्रहर मे केवलज्ञान हो चुका था । इसलिये संघ के सचालन का नायकत्व प्रार्य सुधर्मा स्वामी पर पाया। सुधर्मा स्वामी जी ने कुशलता-पूर्वक सघ का नेतृत्व किया। भगवान महावीर के निर्वाण के बाद २५०० वर्षों में संघ की स्थिति निर्वाणवादी श्रमण भगवान महावीर ने चतुर्विध श्रमण-सघ १ कल्पसून घासी लाल जी महाराज की टीका, सून ११४ २ कल्पसूत्र चूर्णि, सूत्र १२६ - १५२] [निर्वाण-कल्याणक
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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