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इस सवाद से तथा कल्पसूत्र मे निर्दिष्ट प्राचार्य भद्रबाहु के भविष्य-कथन मे इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि भगवान् महावीर के निर्वाण-समय के भस्मक ग्रह के योग मे आगामी दो हजार वर्षों तक प्रमणसघ का गौरव कम होता रहा है, किन्तु वहां यह भी स्पष्ट कयन है कि दो हजार वर्ष की अवधि पूर्ण होने पर भस्मराशि ग्रह के समाप्त हो जाने पर श्रमण-श्रमणियो की उन्नति, सत्कार, सम्मान, गौरव एवं महत्ता मे दिनोदिन अभिवृद्धि होगी। निर्वाणरात्रि में उत्पन्न सूक्ष्म जीव राशि से भविष्य का संकेत
जिस रात्रि मे तीर्थकर महावीर का निर्वाण हुआ था उस रात्रि मे जो पाखो से सहसा न दिखाई दें और जिनकी रक्षा न हो सके. ऐसे कुन्थुवा नामक सूक्ष्म जीवो की राशि उत्पन्न हो गई। यह जीव इतना सक्षम होता है कि स्थिर होने पर हलन-चलन न करने के कारण छद्मस्थ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थनियो को दृष्टिगोचर ही नहीं होता । अत भगवान् महावीर के बहुत से निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थनियो ने इन जोवो की उत्पत्ति को जीव-रक्षा (सयम) के लिये दुराराध्य मानकर आमरण अनशन स्वीकार कर लिया था। सचमुच, यह अनशन इस बात का संकेत था कि आज से संयम का पालन अत्यन्त दुष्कर हो जायगा। अस्तु जो भी हो इस पचमकाल मे सयम-पालन बहुत ही कठिन हो गया है। इसे काल का प्रभाव कहे या दुष्टग्रह का फल कहे, पर यह तो स्पष्ट है कि इस वक्र जडयुग मे सारे ही सघ पर सयम-हानि की कर दृष्टि पड़ी हुई है, सारा ही सघ ग्राज इसकी काली छाया से प्रभावित
निर्वाणोत्तर सव-संचालन सूत्र किन-किन हाथों में ?
भगवान महावीर जव तक जीवित थे, तब तक शासन-व्यवस्था उनके मार्ग-निर्देशन के अनुसार सुन्दर ढग से चलती थी, परन्तु भगवान महावीर ने अपने जीवन-काल मे इन्द्रभूति गौतम आदि ११ श्रमणो को गणधर बनाकर अपने भिक्षु-सघ की श्रुत-न्त्रवस्था ११ गणधरो मे
१. कल्पसून मू० १२८, १२९, १३० । २. कल्पसूत्र सू० १३१, १३२ ।
पञ्च-कल्याणक]
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