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चारो ओर फैल गए थे। निर्वाण का वृत्तान्त जब भगवान् के ज्येष्ठ भ्राता राजा नन्दीवर्धन को मिला तो वे अत्यन्त शोक-विह्वल हो गए। उनके नेत्रो से अश्रु-धारा बह चली। उनका मन भ्रातृवियोग में खिन्न हो गया। बहन सुदर्शना ने उन्हे अपने यहां बुला कर और विभिन्न युक्तियो से समझा-बुझा कर सान्त्वना दी और उनका मोह व शोक दूर किया। वह तिथि कार्तिक शुक्ला दूज थी। तभी से वह तिथि 'भैयादूज' (भ्रातृ-द्वितीया) के पर्व के रूप में मनाई जाती है और भगवान् महावीर के निर्वाण का पुण्य-स्मरण किया जाता है। निर्वाण-समय के भस्म ग्रह का संघ पर प्रभाव ___कहा जाता कि श्रमण भगवान् के परिनिर्वाण का समय निकट जानकर शवेन्द्र पाए और हाथ जोडकर निवेदन करने लगे-"हे नाथ | आपके गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान के समय उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र था और इस समय उसमे भस्मक ग्रह सक्रान्त होनेवाला है, आप श्री के जन्म-नक्षत्र मे सक्रान्त वह ग्रह दो हजार वर्ष तक आपके श्रमणश्रमणियो की अभिवृद्धि (पूजा-सत्कार आदि) को कम करता रहेगा, अत. कृपा करके आप अपनी आयु के क्षणो को बढा ले, ताकि तब तक यह भस्मैग्रह आपके जन्म-नक्षत्र से सक्रान्त कर जाय, क्योकि आपकी विद्यमानता मे यदि यह कुग्रह सक्रमण कर जायेगा तो आपके प्रबल प्रभाव से स्वत निष्फल हो जायगा, अत एक क्षण तक अपनी जीवन घडी को दीर्घ करके प्रतीक्षा करे, जिससे इस दुष्ट ग्रह का प्रभाव शान्त हो जाए।"
__ इन्द्र की इस अभ्यर्थना पर भगवान् ने कहा---'इन्द्र | तुम यह जानते हो कि आयुष्य के क्षणो को न्यूनाधिक करने को शक्ति किसी मे भी नहीं है, फिर भी तुम सघ-भक्तिवश इस प्रकार की अनहोनी बात कह रहे हो । आगामी दुषमकाल के प्रभाव से तीर्थ को हानि पहुचने वाली है, उसमे भवितव्यता के अनुसार यह भस्मक ग्रह भी अपना फल दिखलाएगा हो।"
१ कल्पसून सुवोधिनी टीका। २ महावीर चरिय ।
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। निर्वाण-कल्याणक