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करेगा? कौन मेरी गकाओ का आत्मीयभाव से समाधान करेगा? लोक मे फैलते हुए मिथ्यात्व के अन्धकार को कौन रोकेगा ?
गौतम कुछ क्षणों तक इस प्रकार के विचारो मे डूबते-उतराते रहे, फिर अचानक ही उनके विचारो का प्रवाह बदला-"अरे ! मैं यह क्या सोच रहा हूँ, प्रभु तो वीतराग थे। जिनका नाम ही वीतराग है, वे किसी पर क्यो राग,मोह द्वेष आदि करेंगे? मैं भ्रम मे था, मैं ही उन पर मोह रख रहा था, वे तो मोह-मुक्त थे।" यह जानकर उन्होने आत्मा मे अवधिज्ञान का प्रयोग किया और अवधिज्ञान के प्रकाश में अपने आपको मोह-युक्त पाकर विक्कारा तया मोहवश वीतराग को उपालम्भ देने के अपने अपराध के लिये क्षमा-याचना करके पश्चात्ताप किया और फिर शुक्ल ध्यान मे प्रविष्ट होकर आत्मचिन्तन करने लगे
एगोऽहं नत्यि मे कोइ, नाहमन्नस्स कस्स वि।
एवमप्पाण मणसा अदोणमणुसासए ।। मैं अकेला हू, वास्तव मे मेरा कोई नही है और न मैं किसी का हू, इस प्रकार मन से विचार करके अदीन आत्मा पर अनुशासन करना चाहिए।'
इस प्रकार चिन्तन करते-करते उन्होने चार घाती कर्मो को नष्ट कर डाला । वे राग की कडी तोडते ही उसी क्षण वीतराग बन गए, उन्हे केवल ज्ञान और केवल-दर्शन उपलब्ध हो गया।
यह था भगवान महावीर के निर्वाणवादी होने का प्रत्यक्ष प्रमाण, उन्होने अपने निर्वाण-दीप को जलाने के साथ अनेको मुमानो के निर्वाण-दीप भी पालोकित कर दिये। निर्वाण के बाद देवो का आगमन और पार्थिव शरीर का दिव्य संस्कार
भगवान महावीर के निर्वाण के कारण पावापुरी धन्य हो उठी, पावापुरी का नाम अमर हो गया। देवी-देवो ने जब यह जाना कि तीर्थकर महावीर को निर्वाण प्राप्त हो गया है, तो वे वहा से अपने १ कल्पसून पृ० २८३ ।
[निर्वाण-कल्याणक