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अपने विमानो मे बैठ कर पावापुरी को ओर चल पडे। देवीदेवो के आवागमन के कारण वहां दिव्य प्रकाश हो उठा । सारी पावापुरी प्रकाश से जगमगा उठी। जहा देखो, वही देव-देवियो का मेला सा लग गया। देव-देवियो और मानवो के अपार जमघट के कारण सारी पावापुरी गूज उठी। जहा देखो वही भगवान महावीर के निर्वाण की चर्चा हो रही थी।
देवो ने मिलकर निर्वाण-प्राप्त भगवान महावीर के पार्थिव शरीर का दिव्य सस्कार किया। सबने प्रभु के भव्यगुणो की परिपूर्ण स्तुति की।
देवों और मानवो द्वारा निर्वाण-कल्याणक उत्सव
जिस रात्रि मे भगवान् ने निर्वाण प्राप्त किया, उस रात्रि को काशी-कौशल देश के नौ मल्लवी और नी लिच्छवीवशीय गण राजा पौषध मे थे। उन्होने तथा वहा उपस्थित समस्त जनता ने भगवान् महावीर का निर्वाण-कल्याणक-उत्सव मनाने का विचार किया। देवगण भी वहा उपस्थित थे, उन्होने भी इसमे योगदान देने का निश्चय किया।
तीर्थङ्करो के निर्वाण को भी कल्याणक का रूप इसलिये दिया गया है, क्योकि उनके जन्म की तरह निर्वाण भी अनेक लोगो के कल्याण एव एकान्त सुख का कारण होता है। कल्याणक का अर्थ है जो अपने लिये
और सासारिक प्राणियो के लिये कल्याणरूप फल का कारण हो, जो परमश्रेय का साधन हो, अनर्थोपरामकारक हो, एकान्तप्रियसुखावह हो, और मुक्ति का कारण हो।
भगवान् महावीर का निर्वाण भी इन सभी लक्षणो से युक्त था, प्रतः उसको भी निर्वाण-कल्याणक' का रूप दिया गया। सचमुच भगवान् महावीर की निर्वाण-साधना एव निर्वाण-प्राप्ति से अनेक लोगो
१ कल्याणकः प्रात्मन परेषा जीवाना च क्ल्याणफलत्वादि लक्षण. नि.श्रेयमसाधनानि कल्याणफलानि च । कल्याणक. एकान्तसुकान्तसुखावहे-पुण्ये कर्मणि, मनर्थोपरामकारिणि क्ल्यो मोक्षस्तमानयतीति कल्याणक मुक्तिहेतो।
-अभिधानराजेन्द्रकोप
पञ्च-कल्याणक]
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