________________
मार्ग मे नालन्दा के निकट हस्तियाम नामक उद्यान मे उदक नामक पाश्र्वापत्य साघु रहते थे। उन्होने इन्द्रभूति गौतम के समक्ष अनेक प्रकार की धार्मिक जिज्ञासाए उपस्थित की और भगवान महावीय के मनन्योपासक गौतम से सव प्रश्नो के सम्यक् समाधान पाकर वह भी भगवान् महावीर का शिष्य बन गया।
इस वर्ष का चातुर्मास नालन्दा मे व्यतीत हुआ । तीर्थडर जीवन : पैतीसवां चातुर्मास
वर्षावास की पूर्णता पर भगवान शिष्य-मण्डली सहित धर्म-प्रचार करते हुए वाणिज्यग्राम मे पधारे और दूतीपलासचैत्य नामक उद्यान में उन्होने कुछ दिन प्रचार किया। वाणिज्यग्राम के प्रसिद्ध सेठ सुदर्शन ने भगवान् से काल-विषयक अनेक प्रश्न किए जिनका उत्तर पाकर उसका मस्तक प्रभु-चरणो मे झुक गया । भगवान् ने सुदर्शन सेठ को पूर्व जन्मो का ज्ञान कराया तो सुदर्शन सेठ को जाति-स्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया, उसने अपने पूर्वजन्मो के साधु-जीवन और देवलोको के जीवन को जानकर भरी सभा मे प्रभु से दीक्षा प्रदान करने की प्रार्थना की । यह दीक्षित होकर भगवान् का शिष्य बन गया।
वाणिज्य ग्राम मे श्रमणोपासक अानन्द के अवधिज्ञान पर गौतम को सन्देह हुआ और भगवान महावीर ने गौतम के सन्देह की निवृत्ति करते हुए कहा-'गृहस्थ जीवन मे भी विधिवत् धर्म-मर्यादाओ का पालन करता हा श्रावक आनन्द जैसा व्यक्ति 'अवधिज्ञान' प्राप्त कर सकता है । गौतम जी ने आनन्द श्रावक से क्षमा याचना की और अव प्रभु महावीर वैशाली की ओर चल पडे । वर्षावास वैशाली मे ही सम्पन्न हुआ। तीर्थङ्कर जीवन : छत्तीसवां चातुर्मास
वैशाली के वर्षावास की समाप्ति पर प्रभु-पद कोशल की ओर बढे और कुछ ही दिनो मे उन्होने साकेत' का स्पर्श किया।
साकेत निवासी जिनदेव नामक श्रावक म्लेच्छो के देश के भीतर १. अाधुनिक अयोध्या नगरी । पञ्च-कल्याणक]
[१३३