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________________ 'भगवन् ! कुछ प्राचार्य कहते हैं शील अर्यान् सदाचार श्रेष्ठ है, कुछ कहते है श्रुत अर्थात् ज्ञान श्रेष्ठ है, कुछ दोनो को श्रेष्ठ कहते हैं ? प्रभो । वास्तविकता क्या है ? भगवान का उत्तर था-गौतम चार प्रकार के व्यक्ति होते हैं। १. कुछ शील सम्पन्न होते हैं, परन्तु श्रुत-सम्पन्न नहीं होते। २ कुछ श्रुत सम्पन्न होते हैं, परन्तु गोल सम्पन्न नहीं होते। ३ कुछ शील सम्पन्न भी होते हैं, श्रुत सम्पन्न भो। ४ कुछ न शील सम्पन्न होते हैं और न श्रुत सम्पन्न हो । इन मे प्रथम व्यक्ति देशारावक अर्थात् धर्म के एक अश का पालन करता है । दूसरा व्यक्ति देश विरावक अर्थात् धर्म को समझता तो है, किन्तु धर्मका पालक नही माना जा सकता, तीसरा व्यक्ति सम्पूर्ण धर्म का साधक होता है और चोया व्यक्ति किमो भो दृष्टि से धर्म की पाराधना करनेवाला नही माना जा सकता । राजगृह के श्रावक श्रेष्ठ मद्दुक ने अन्य धर्मावलम्बियो को जब भगवान् महावीर के सिद्धान्त समझाए तो भगवान् ने उसकी समस्त बातो का समर्थन करते हुए कहा- किसी भी प्रश्न का उत्तर विना सोचे-समझे नहीं देना चाहिए, विना सोचे-समझे बोलनेवाला व्यक्ति केवली भगवान की वाणी का निरादर करता है।' ___ इस वर्ष का चातुर्माम भगवान् ने राजगृह मे हो प्रवचनामृत को वर्षा करते हुए पूर्ण किया। तीर्थडूर जीवन चौतीसवां चातुर्मास राजगृह के वर्षावाम के अनन्तर कुछ दिन तक भगवान् महावीर इधर-उधर विचरण करते रहे । चम्पा की ओर जाते हुए मार्ग मे शाल और महाशाल नामक मुनियो ने भगवान से अपने ससारी पक्ष के भानजे को प्रतिबोध देने की आज्ञा मागो । भगवान् ने गौतम के साथ उन्हे वहा जाने की आज्ञा दे दो। पृष्ठचम्पा पहुच कर उन्होने दर्शनार्थ एव प्रवचन सुनने के लिये प्राए हुए गानि को जब उपदेश दिया तो वह भी अपने पिता पिठर और माता यशोमतो के साथ विरक्त होकर गौतम स्वामी का शिष्य बनकर भगवान को शरण मे आ पहुचा । १३२] । केवल-ज्ञान-कल्याणक"
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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