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करते हुए वे पुन: वाणिज्य ग्राम श्रा गए और यही पर उन्होने वर्षावास
किया ।
तीर्थङ्कर जीवन : उनत्तीसवां चातुर्मास :
वाणिज्यग्राम के वर्षावास की पूर्णता पर भगवान राजगृह के गुणगील उद्यान मे पहुचे । यहा पर उन्होने ग्रन्य मतावलम्बियों की धारणाओं के सम्बन्ध मे गौतम के हृदय मे उठे अनेक प्रश्नो के समाधान किये। विशेषत गौतम का प्रश्न था कि "जब कोई श्रावक सामायिक की ग्राराधना करता है तब वह जीव-जीव सभी से अपना ममत्व सम्बन्ध तोड देता है, अर्थात ममत्व के परित्याग का प्रयत्न करता है, श्रत उसका किसी से कोई सम्बन्ध नही रह जाना। ऐसी दशा मे भी सामायिक व्रत के अनन्तर क्या उसका स्वामित्व उन पर बना रहता है ?' भगवान् ने कहा - ' गौतम | सामायिक की अवस्था मे उस का सम्बन्ध टूट जाता है क्योकि वह उम समय उनके उपभोग से रहित हो जाता है, फिर भी उसका वस्तु स्वामित्व समाप्त नही होता |
भगवान ने इस वर्ष का चातुर्माम भी राजगृह मे ही किया और अनेक साधुग्रो ने राजगृह के विपुल पर्वत पर अनशन करके सिद्धत्व प्राप्त किया ।
तीर्थङ्कर जीवन : तीसवां चातुर्मास :
चातुर्मास की पूर्णता पर भगवान महावीर चम्पा के उपनगर पृष्ठचम्पा मे ठहरे | पृष्ठचम्पा के अधिपति राजा शाल और उनका छोटा भाई महाशाल भी प्रवचन सुनने ग्राए थे । प्रवचन - प्रभाव से उनकी प्रसुप्त वैराग्य-भावना जाग उठी और महाराज शाल ने छोटे भाई को भी प्रती दीक्षा के लिये प्रस्तुत देख कर अपने भानजे गागली को राज्यभार सौपा और दोनो भाइयो ने प्रभु चरणो में पहुंच कर निर्ग्रन्य-दीक्षा ग्रहण कर ग्रात्मोद्धार की साधना आरम्भ कर दी ।
कामदेव की धर्मनिष्ठा :
भगवान चम्पा के पूर्णभद्र उद्यान मे पहुंचे । आज के प्रवचन मे श्रावक कामदेव भी आया हुआ था । भगवान ने उससे पूछा - 'कामदेव !
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[ केवल-ज्ञान-कल्याणक