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गौतम स्वामी ने कहा-'श्रमण-श्रेष्ठ । वासना-लिप्त आत्मा, काम, क्रोध, मान, माया , लोभ और पाच इन्द्रिया ये ही साधक के सबसे बडे शत्रु है। मैंने पहले एक को जीता है अर्थात् प्रात्म-सयम किया है। इस प्रकार एक को जीतकर प्रथम चारो शत्रुनो को जीत लिया और पाच शत्रुनो पर विजयी हो जाने पर दस शत्रु अपने आप परास्त हो जाते है। दस शत्रुयो पर जिसने विजय प्राप्त करली उसके लिये अन्य कोई शत्रु शेष नही रह जाता है।
कुछ अन्य महत्त्व पूर्ण प्रश्नो का समाधान पाकर केशिकुमार भी भगवान् महावीर के श्रमण सघ मे प्रविष्ट हो गए।
प्रभु महावीर भी श्रावस्ती पहुच गए। कुछ दिन वहा ठहर करके भगवान अहिच्छत्रा नगरी होते हुए हस्तिनापुर के सहम्रान नामक उद्यान मे ठहरे। राजर्षि शिव को प्रतिबोध :
हस्तिनापुर मे नरेश शिव के हृदय में वैराग्य जागा और उन्होने ज्येष्ठ-पुत्र को राज्य देकर स्वय तापस प्रव्रज्या धारण कर तप करना प्रारम्भ कर दिया। तप के प्रभाव से उन्हे जो ज्ञान-दृष्टि उपलब्ध हुई उसके अनुसार वे इस निश्चय पर पहुचे कि सात द्वीप और सात ही समुद्र है और वे इसी बात का प्रचार हस्तिनापुर मे भी करने लग गए।
इन्द्रभूति गौतम जब भिक्षा के लिये नगर मे गए तो उन्होने राजपि शिव की वात सुनी। इस बात को उन्होने प्रभु महावीर के समक्ष प्रवचन के समय रखा और भगवान ने धर्म-सभा मे प्रवचन करते हुए कहा-'द्वीप और समुद्र सात ही नही, असख्य है । ।
जब महर्षि शिव को यह ज्ञात हुआ तो वे भी भगवान के पास अपनी शकाओ का समाधान करने के लिये आए। यहा वे भगवान् का वैराग्यमय सत्यनिष्ठ प्रवचन सुन कर अत्यन्त प्रसन्न हुए और विधिपूर्वक वन्दना करके वोले-भगवन | 'मुझे भी निर्ग्रन्थ-मार्ग की दीक्षा देकर अनुगृहीत करे । भगवान ने उन्हे दीक्षित किया और वे सयम पूर्वक तपस्यामय जीवन व्यतीत करने लगे।
यहा से भगवान् मोका नगरी पधारे और अनेक स्थानो को पावन