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महावीर की अस्वस्थता और उपचार :
तेजोलेश्या के प्रहार-प्रभाव से भगवान महावीर का शरीर भी रक्तातिसार और पित्तज्वर से ग्रस्त रहने लगा। जव श्रावस्ती से विहार करके भगवान् अनेक स्थानो की यात्रा करते हुए छः मास बाद मेढिय ग्राम मे पहुचे और 'सालकोष्ठक चैत्य' नामक उद्यान मे ठहरे। परम तपस्वी सिंह मुनि भगवान् की अस्वस्थता दुर्वलता एवं गिरती हुई शारीरिक दशा को देख कर एक दिन पास ही मालुका कच्छ मे जाकर फूट-फूट कर रोने लग तभी भगवान ने अपने शिष्यो को वुलाकर कहा-'पार्यो। भद्रप्रकृति सिंह अनगार मेरे स्वास्थ्य की विगडती हालत से घबरा कर मालुका कच्छ में रो रहे हैं। जामो उन्हे वुला लायो। उनके पाने पर भगवान ने कहा--सिंह ! इतने चिन्तातुर क्यो हो उठे हो मेरा यह शरीर अभी साढ़े पन्द्रह वर्ष इस वरातल पर हो सानन्द रहेगा। यदि तुम मुझे स्वस्थ देखना ही चाहते
तो जानो इसी ग्राम मे रेवती नामक समृद्ध श्राविका रहती है उसने पेठे से और वीजारे दो औषधिया तैयार की हैं। पहली औषधि उसने मेरे निमित्त से तैयार की है, वह मत लाना, दूसरी औषधि भिक्षा मे ले पायो, मैं स्वस्थ हो जाऊगा ।
सिंह अनगार रेवती के घर पहुंचे और कहा-देवी ! जो औपधि आपने प्रभु महावीर के लिये तैयार की है वह नही, दूसरी औषधि बीजौरापाक दे दीजिए। रेवती इस घटना से अत्यन्त प्रभावित हुई उसने बीजौरापाक दे दिया, उस का ग्राहार करते ही भगवान् सर्वथा स्वस्थ हो गये और रेवती भी इस प्रोपविधान से देवलोक की अधिकारिणी बन गई।
जमालि पथभ्रष्ट हुआ :
भगवान् महावीर जब तेईसवा वर्षावास पूर्ण कर ब्राह्मण कुण्डपुर मे पधारे थे तब महावीर प्रभु द्वारा आजा प्राप्त न होने पर भी उसने स्वेच्छा से भगवान का साथ छोड़ दिया था और वह तत्र से स्वतन्त्र विहार कर रहा था। १२४ ]
[ केवल-ज्ञान-कल्याणक