________________
इन दिनो जमालि अनगार अत्यन्त अस्वस्थ थे वे श्रावस्ती के कोप्ठक चैत्य मे ठहरे हुए थे। उन्होने शिष्यो को विस्तर बिछाने की आज्ञा दी। जमालि अनगार अत्यधिक अस्वस्थता के कारण खडे रहने मे भी असमर्थ थे, अत उन्होने विस्तर विछाते हुए शिष्यो से पूछा 'क्या विस्तर बिछा दिया गया है ?' शिष्यो ने कहा-गुरुदेव ! विछा दिया। विछौना अधूरा देखकर बिछा तो नही, बिछा रहे हैं । कुछ ही क्षणो के वाद जमालि लेट तो गए, परन्तु सोचने लगे भगवान महावीर तो किए जाने वाले कार्य को किया हुप्रा (करेमाणे कडे) कहते है, यह सिद्धान्त ठीक नहीं। जब तक क्रिया समाप्त न हो जाय तब तक उसे किया हुया कैसे कहा जा सकता है। उसने भगवान के मत का विरोध प्रारम्भ कर दिया।
उसके अनेक शिष्यो ने समझाया भी कि 'भगवान् महावीर का 'किए जाने वाले कार्य को किया हुआ' कहने का सिद्धान्त निश्चयनय की दृष्टि से ठीक है क्योकि निश्चयनय 'कार्य के होने के काल मे और पूर्ण हो जाने के काल मे अभिन्नता मानता है, परन्तु जमालि अपने आग्रह पर दृढ रहा। __ भगवान महावीर विहार करते हुए चम्पा पहुंच चुके थे । जमालि भी स्वस्थ होकर चम्पा आ गया। उसने भगवान् के पास पहुंच कर कहा कि 'मैं भी केवलज्ञानी होकर विचरण कर रहा हू।"
भगवान् महावीर ने कहा-देवानुप्रिय ! केवलज्ञान कोई ऐसी वस्तु नही है जिसके होने की घोषणा केवली को स्वय करनी पडे । उसी समय श्री गौतम जी ने जमालि से कुछ दार्शनिक प्रश्न भी किए जिन का वह उत्तर न दे सका, अत उन प्रश्नो का समाधान भगवान को ही करना पड़ा। जमालि अपने प्राग्रह पर दृढ रहा और वहा से चला गया ।
प्रियदर्शना जो गृहस्य अवस्था मे जमालि की पत्नी थी वह भी कुछ दिन जमालि के सिद्धान्त पर विश्वास करती रही परन्तु एक दिन वह श्रावस्ती मे अपने साध्वो सब के साथ ढक नामक कुम्हार की भाण्डशाला में ठहरी । ढक ने जान बूझ कर उनके वस्त्र पर चिंगारी