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________________ सातवां शरीर धारण किया है, क्योकि मेरे मे पर-शरीर-प्रवेश की शक्ति है।" भगवान ने कहा-गोशालक | अपने को छिपाने का प्रयास मत करो। सत्य का अनुकरण ही श्रेयस्कारी होता है।' गोशालक ने क्रोध मे भर कर कहा-'काश्यप [१ तुम्हारे दिन पूर्ण होने वाले हैं, अब तुम इस धरती पर विचरण नही कर सकोगे।' गोशालक के इस अभद्र व्यवहार को देखकर सर्वानुभूति नामक साधु से रहा न गया और वह गोशालक को समझाने के लिये उसके पास गया तो गोशालक ने उसे 'तेजोलेग्या२ से भस्म कर दिया और वह फिर महावीर के प्रति अभद्र वचन कहने लग गया। सर्वानुभूति की दशा देखते हुए सुनक्षत्र नामक साधु से भी रहा न गया और वह भी उसे समझाने के लिये उठा तो उसे भी गोगालक की तेजोलेश्या से भस्म हो जाना पड़ा। अब भगवान् महावीर ने गोशालक को स्वय समझाने का निश्चय किया तो गोशालक ने उन पर भी तेजोलेश्या से प्रहार किया, किन्तु तेजोलेश्या की लपटें प्रभु महावीर के वज्रोपम शरीर से टक्करा कर वापिस हो गई और मखलिपुत्र गोशालक के शरीर मे प्रविष्ट हो गई । तेजोलेश्या के अनुचित प्रयोग के कारण गोशालक विक्षिप्त हो गया, उसका शरीर जलने लगा और वह सातवे दिन समाप्त हो गया। गोशालक को सातवे दिन अपने अपराध की अनुभूति हुई और पश्चात्ताप करते हुए एव मानसिक रूप मे क्षमा-याचना करते हुए शुभ परिणामो से उसने शरीर का त्याग किया था, अत वह अच्युतकल्प नामक देवलोक मे देवरूप से उत्पन्न हुआ । सर्वानुभूति सहस्रारकल्प नामक देवलोक मे तथा सुनक्षत्र मुनि अच्युत कल्प नामक देवलोक मे उत्पन्न हुए । गौतम के प्रश्न का समाधान करते हुए इन तीन आत्माग्रो के देवलोकवास की बात भी भगवान महावीर ने ही बताई थी। १ कश्यप गोत्रीय होने के कारण महावीर को 'काश्यप' भी कहा जाता है। २ तप द्वारा प्राप्त एक प्रकार की तेजस् शक्ति जिसके द्वारा किसी को भी जलाया जा सकता है। पञ्चकल्याणक ) [ १२३
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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