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करता या भिक्षार्थ नगर मे गया तो उसे गोशालक ने रोक लिया
और कहा- 'जरा मेरी बात सुनकर नायो।' ग्रानन्द रुक गया तो गोशालक ने कहा
__ 'प्रानन्द | एक बार चार वणिक व्यापार के लिये जा रहे थे। मार्ग मे उन्हे एक बन मे बहुत प्यास लगी, परन्तु उन्हें पास-पास कही भी जल प्राप्त नही हो रहा था। तभी उन्होने चार गिम्वरो वाली एक बाम्बी (वात्मीक) दिखाई दी। उन्होने एक शिखर तोडा तो उन्हे उमके नीचे शीतल जल प्राप्त हया । उन लोभी बनिको ने दूसरा शिखर भी तोड दिया तो उसके नीचे से उन्हे विशाल स्वर्ण-रागि प्राप्त हुई । लोभ और बढ गया, अत. तीसरा शिखर भी तोड़ दिया और उसके नीचे से उन्हे विशाल रत्न-भण्डार प्राप्त हुया । लोभी वणिको ने चौथा शिखर भी तोडने का निश्चय किया तो उनके एक साथी ने कहा-'अति लोभ बुरा होता है, अत चीया शिखर मत तोडो और इस प्राप्त धन-राशि को लेकर चल दो। परन्तु वे नहीं माने प्रत चौथा माथी वहा से दूर हट गया। चौथा शिखर जैसे ही टूटा उसके नीचे से एक दृष्टिविष सर्प निकला जिसके विप से तीनो का प्राणान्त हो गया। चौथा साथी प्राप्त वैभव के साथ गन्तव्य स्थान पर पहुच गया।
आनन्द | तुम्हारे धर्म-गुरु को भी तपस्तेज और यश प्राप्त हो चुका है, अब वह अधिक कीति के लोभ से मेरे विषय मे अनाप-शनाप बाते कह रहा है, अत उससे कह देना कि वह अनर्गल बाते कहना वद कर दे अन्यथा उसकी दशा भी लोभी वनिको जैसी होगी।
गोशालक की सारी चर्चा अानन्द ने प्रभु महावीर को सुनाई तो उन्होने कहा-'आनन्द | गोशालक तेजोलेश्या के प्रयोग में समर्थ है। वह यही आनेवाला है, अत समस्त साधु वर्ग को कह दो कि वे गोगालक से किसी तरह का वाद-विवाद न करे।' गोशालक प्रभु के पास पाया ।
गोशालक भगवान के पास आया और कुछ दूर खडे होकर बोला'आयुष्मन् महावीर | मै मखलि पुत्र गोशालक नही हूँ मैं तो कोण्डियायन गोत्रीय उदायी हू, मैंने गोशालक का गरीर धारण किया हुआ है, क्योंकि यह शरीर सर्वविध कष्ट सहन करने में सक्षम है। मैंने स्वेच्छा से यह १२२
( केवलज्ञान--कल्याणक