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________________ कोणिक और वैगाली गणराज्य के प्रमुख चेटक मे भयकर युद्ध हो रहा था। भगवान पुन चम्पा के पूर्णभद्र चैत्य नामक उद्यान मे पहुचे। यहां उनके प्रवचन सुनने के लिये श्रेणिक की दस रानिया काली आदि भी आई । उनके पुत्र कोणिक की ओर से युद्ध मे लडने के लिये वैशाली की रणभूमि मे गए हुए थे। उनकी कुशलता पूछने पर भगवान ने उनकी मृत्यु का हाल बताते हुए ससार की विनश्वरता का जो वर्णन किया उससे प्रभावित होकर उन दसो राजमाताओ ने श्रमणी "धर्म" अगीकार कर लिया और निरन्तर आत्मोद्धार का प्रयास करने लगी। वहा से उन्होने मिथिला की ओर विहार कर दिया और यह छब्बीसवा चातुर्मास मिथिला मे सम्पन्न हुआ। तीर्थङ्कर जीवन : सत्ताईसवी वर्षावास : वर्षावास की पूर्णता पर भगवान महावीर ने विहार कर दिया और अनेक क्षेत्रो की स्पर्शना करते हुए श्रावस्ती के "कोष्ठक चैत्य" नामक उद्यान में ठहरे। इन्ही दिनो मखलिपुत्र गोशालक भी श्रावस्ती की 'हालाहला' नामक सम्पन्न कुम्हारिन की भाण्डशाला मे ठहरा हुआ था। यहा उसका दूसरा परम भक्त अयपुल भी रहता था। मखलिपुत्र गोशालक भी अपने को 'तीर्थडर' कहा करता था और अपने आजीवक धर्म का प्रचार कर रहा था । गौतम जी ने श्रावस्ती मे एक साथ दो तीर्थङ्करो के पधारने की बात जव जन ता द्वारा सुनी तो उन्होने लौटकर भगवान् महावीर से इस तथ्य को बताने की प्रार्थना की तो भगवान् ने गोगालक का पूर्ण परिचय दे दिया। यह चर्चा श्रावस्ती मे धूप-धूम के समान सर्वत्र फैल गई और धीरे-धीरे गोशालक के पास भी यह चर्चा पहच गई। उसने क्रोधावेश मे आकर भगवान से बदला लेने का निश्चय कर लिया। आनन्द और गोशालक : भगवान महावीर का एक स्थविर शिष्य आनन्द जो सर्वदा एक दिन उपवास और एक दिन भोजन करता था वह इस क्रम से तप पञ्च-कल्याणक } [१२१
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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