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________________ का ध्यान न रखकर 'जो सच्चा सो मेरा' का निश्चय रखते थे। ब्राह्मण कुण्ड पुर से वे कौशाम्बी पाए, जैनागम कहते हैं कि यहां पर उन्हे वन्दना करने के लिये सूर्य और चन्द्र के इन्द्र अपने वास्तविक शरीर मे ही कौशाम्बी मे आए थे। इस घटना को 'आश्चर्य' माना गया है। ___ कौशाम्बी से काशी की स्पर्गना करते हुए भगवान राजगृह में पधारे । उस समय राजगृह के निकटवर्ती तुंगीया के पुप्यवतीक चैत्य में भगवान पार्श्वनाथ के स्थविर ठहरे हुए थे, उनसे तुंगीया के श्रावको ने पूछा-'देवलोक मे देव किस कारण से उत्पन्न होते हैं ? तो पापित्यो ने बताया कि पूर्वतप, पूर्व-सयम, कामिकता और सांगिकता (आसक्ति) के कारण देव देवलोक मे उत्पन्न होते हे ।' श्री गौतम स्वामी उसी दिन भिक्षा के लिये गए तो उन्होने पापित्यो के उत्तर सुने और भिक्षा से लौट कर उन उत्तरों की यथार्थता के विषय मे भगवान से पूछा तो उन्होने पाश्र्वापत्यो के द्वारा प्रतिपादित सत्य का उदार हृदय से समर्थन किया। तीर्थकर जीवन : पच्चीसवां वर्ष राजगृह-चातुर्मास के अनन्तर भगवान महावीर मगधपति श्रेणिक के देहावसान के बाद कोणिक द्वारा नव निर्मित राजधानी चम्पा के 'पूर्णभद्र चैत्य' मे ठहरे। उनके प्रवचन सुनने के लिये कोणिक भी सपरिवार पाया। भगवान् के प्रवचनामृत का पान कर महाराज श्रेणिक के पद्म, महापद्म आदि दस पौत्रो ने मुनिधर्म अगीकार कर लिया। जिन-पालित आदि अनेक श्रेष्टियों ने भी मुनि-जीवन अगीकार किया तथा 'पालित' आदि अनेक श्रेष्ठियो ने 'श्रावक-धर्म' मे दीक्षित होकर श्रद्धामय पावन जीवन व्यतीत करना प्रारम्भ कर दिया । यहा से वे विदेह मे प्रविष्ट हुए। मार्ग मे काकन्दी मे क्षेत्रक और वृतिधर आदि श्रेष्ठियो को श्रमण-धर्म मे दीक्षित कर मिथिला पहुंचे और यह चातुर्मास वही व्यतीत किया। तीर्थर जीवन : छब्बीसवां चातुर्मास भगवान महावीर मिथिला के चातुर्मास की समाप्ति पर अगदेश की ओर बढ़े। इन दिनो विदेह की राजधानी "वैशाली" मे महाराज १२०] [ केवल-ज्ञान-कल्याणक
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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