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________________ जीव भी द्रव्य की दृष्टि से एक है, अत सान्त है, क्षेत्र की दृष्टि से अनन्त प्रदेशोवाला है तथापि सान्त है, काल की अपेक्षा यह ज्ञान-दर्शन एव चारित्र आदि अनन्त रूपो से युक्त होने के कारण इसे अनन्त भी कहा जा सकता है। इसी प्रकार सिद्धि और सिद्ध भी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की दृष्टि से सान्त भी हैं और अनन्त भी हैं । अभावो से ग्रस्त होकर, जीवन से निराश होकर आत्महत्या करके मरना आदि बारह प्रकार के मरण को वाल-मरण कहा जाता है और शुभ ध्यान-पूर्वक अनशनादि के द्वारा मृत्यु के सिर पर पैर रख कर शरीर का त्याग करना पण्डित-मरण है। स्कन्दक के जान-नेत्र खुल गए, उसने दण्ड-कमण्डलु आदि त्याग कर भगवान से श्रमणत्व की दीक्षा प्राप्त कर आत्मोद्धार किया। ___ कृतगला के छत्र-पलास उद्यान से प्रभु श्रावस्ती के कोष्ठक उद्यान मे आए, यहा जो प्रवचन-गगा प्रवाहित हई उसमें स्नान कर नन्दिनी पिता और सालिही पिता आदि सेठो ने पत्नियो सहित श्रावकत्व स्वीकार किया। ___ यहा से चलने के बाद भगवान पुन: वाणिज्य ग्राम मे पहुचे और उनके इस चातुर्मास-निवास का श्रेय वाणिज्य-ग्राम को ही प्राप्त हुआ। चौबीसवां चातुर्मास : जमालि का पृथक् विचरण श्रमग भगवान महावोर वाणिज्य ग्राम से ब्राह्मण कुण्डपुर के वहुसाल उद्यान मे पहुचे जमालि भगवान के सासारिक पक्ष का जामाता था और वह पाच सौ राजकुमारो के साथ प्रजित हुआ था। एक वार उसने प्रभु से प्रार्थना की -'भन्ते । मैं अपने पाच सौ साधुप्रो के साथ अन्यत्र विचरण करना चाहता है। परन्तु उसके तीन बार पूछने पर भी अनिष्ट जानकर प्रभु ने कोई उत्तर नही दिया। भगवान के मौन की उपेक्षा करके जमालि अपनी साधु-मण्डली के साथ वहा से स्वय ही निह्नवता की ओर चला गया। सत्य का समर्थन सन्मति भगवान महावीर सत्य के उपासक थे, अत: वे स्व-पर पञ्चकल्याणका [११९
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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