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कृतगला श्रावस्ती' के निकट ही थी। श्रावस्ती के समीप एक मठ मे त्रिदण्डधारी स्कन्दक नाम के एक तपस्वी परिव्राजक रहते थे। उनसे पिंगलक नाम के एक निर्ग्रन्थ मुनि ने निम्नलिखित प्रश्न किए थे :
१ इस लोक का अन्त है या नहीं ? २ जीव का अन्त है या नहीं ? ३ सिद्धि का अन्त है या नहीं ? ४. सिद्धो का अन्त है या नही ? ५ किस मरण से जीव ऊर्ध्वलोक-गामी या अधोलोक-गामी
वनता है ? परिव्राजक स्कन्दक इन प्रश्नो मे खो गए थे और वे इनका सम्यक् उत्तर चाहते थे। भगवान महावीर का आगमन सुनकर स्कन्दक परिव्राजक कृतगला की ओर चल पडे ।
उधर भगवान महावीर ने गौतम जी को उनके आगमन की एव पिगलक द्वारा पूछे गए प्रश्नो को पूर्व सूचना दे दी थी। स्कन्दक गौतम जी के साथ प्रभु-चरणो मे पाए और उनके तेजस्वी स्वरूप के समक्ष उनका मस्तक अनायास ही झुक गया।
भगवान महावीर ने लोक के सन्दर्भ मे स्कन्दक के प्रश्नो का द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की दृष्टि से समाधान करते हुए कहा
"स्कन्दक | द्रव्य की दृष्टि से यह लोक सान्त और एक है, क्षेत्र की दृष्टि से असख्य कोटि-कोटि योजन परिमाण वाला है, फिर भी सान्त है। काल की अपेक्षा से यह गाश्वत है, अत: अनन्त है, भाव की अपेक्षा से भी लोक अनन्त है, क्योकि अनन्त वर्णो, गन्धो, गुरुत्व, लधुत्व आदि की दृष्टि से इसके अनन्त रूप है।
१ श्रावस्ती विहार के गोडा जिले मे बलराम पुर के पश्चिम मे बारह मील
की दूरी पर राप्ती नदी के तट पर बसा एक समृद्ध नगर था जिसके ध्वसावशेष सहेठ-महेठ के नाम से आज भी पहचाने जा सकते हैं। १ करोड की सख्या को करोड से गुणा करने पर आनेवाले गुणनफल को 'कोटि-कोटि' या कोडा-कोडि कहा जाता है ।
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[ केवलज्ञान- कल्याणक