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________________ वीर का पच महा व्रतात्मक सप्रतिक्रमण-धर्म स्वीकार कर अपने को कृतकृत्य किया। ___यही पर मुनिराज रोह ने प्रभु से लोक-अलोक, जीव-अजीव, भव-सिद्धिक, और अभव-सिद्धिक, अण्डा पहले या मुर्गी पहले आदि के सम्बन्ध में अनेक प्रश्न किए और भगवान ने लोक-अलोक आदि की शाश्वत स्थिति का परिज्ञान कराते हुए मुनिराज रोह को 'अनेकान्तवाद' के तत्त्व समझाए। यही पर भगवान महावीर ने गौतम स्वामी के प्रश्नो का उत्तर देते हुए बताया कि __ "गौतम | आकाश पर वायु प्रतिष्ठित है, वायु के आधार पर घनोदधि ठहरा हुआ है, उसके आधार पर पृथ्वो है, पृथ्वी पर स एव स्थावर जीव रहते है, इन जीवो के आधार पर अजीव अर्थात् शरीर की सत्ता विद्यमान है, जीव का आधार कर्म है, जीव द्वारा अजीवसगृहीत हैं और कर्म-सगृहीत जीव है ।" गीतम ने कहा-'प्रभो । वायु पर इतना भार कैसे रह सकता है ?" प्रश्न का समाधान करते हुए भगवान ने कहा- "गौतम | जैसे कोई व्यक्ति मगक को हवा से भर कर उसका मुह वद करदे, फिर उस मगक के मध्य भाग को मजबूती से बाधकर मुह पर वधी गाठ को खोल कर आधे भाग की हवा निकाल कर उस भाग में पानी भर कर फिर से मशक के मुह को वाध दे और फिर मध्य की गाठ खोल दे, तव पानी वायु पर ठहरा हुया मशक के एक भाग मे ही स्थिर रहता है, इसी प्रकार लोक मे वायु के आधार पर समुद्र एव पृथ्वी प्रतिष्ठित । राजगृह-निवासी चातुर्मास भर प्रभु के मुखारविन्द से प्रवाहित ज्ञान-गगा में स्नान कर पावन होते रहे। उदित होते हुए सूर्य के समान भगवान् राजगृह से विहार करके अनेक ग्रामो और नगरो की स्पर्गना करते हुए कृतगला (कचगला) नगरी के छत्रपलाश नामक उद्यान मे ठहरे। उनके उपदेशामृत का पान करने लिये जन-समूह उमड पडा। पञ्च-कल्याणक] [ ११७
SR No.010168
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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