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गोत्रो का स्वामी था । इसकी तेरह पत्निया थीं। इसकी पत्नी रेवती ने अपनी १२ सौतो को छल से मार डाला था । मद्य-मास उसके प्रिय खाद्य एव पेय थे । वह कामासक्ता वासनालोलुप नारी थी । राजगृह में प्रभु के पधारने पर महाशतक ने १२ व्रत धारण कर श्रावक धर्म का पालन प्रारम्भ कर दिया । अव उसने ज्येष्ठ पुत्र को गृह-भार सम्भाल कर धर्म साधना आरम्भ कर दी ।
जब वह धर्मस्थान ( उपाश्रय) मे धर्म - सावना करने जाता तो रेवती वहां पहुच कर उसे अनेक प्रकार से वासनामय जीवन की ओर आकृष्ट करती थी, परन्तु महाशतक स्थिर भाव से सावना करते रहते थे वे कभी भी विचलित न होते थे ।
धीरे-धीरे महाशतक अपने ग्रवविज्ञान से ऊपर के पहले देवलोक और नीचे के पहले नरक तक को देखने लग गए। एक दिन रेवती की अभद्र चेप्टाओ के कारण उन्हे क्रोध या ही गया और उन्होने कहा'तुम क्या कर रही हो। तुमने तो विपूचिका रोग से पीड़ित हो कर सातवें दिन मर कर चौरामी हजार वर्षो के लिये नरक में जाना है ।" रेवती ग्रव होश मे आई, परन्तु ग्रव तोर हाथ से निकल चुका
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था । महाशतक का कथन सत्य हुआ ।
भगवान् महावीर यह सब कुछ जान गए और उन्होने गौतम को भेज कर महागतक को कटु वाणी बोलने का प्रायश्चित्त करने के लिये कहा और महाशतक ने मासिक सथारे द्वारा आराधक होकर देवलोक प्राप्त किया ।
यहा पर भगवान् पार्श्वनाथ के अनुयायी कुछ स्थविरो ने आकर भगवान् से लोक की स्थिति आदि के सम्वन्ध मे अनेक प्रश्न किए । भगवान् ने एक लोक-द्रष्टा के रूप मे जो उत्तर दिए उनसे प्रभावित होकर उन्होने चातुर्याम धर्म के स्थान पर अब प्रभु
१ भगवान पार्श्वनाथ के अहिंसा, सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह रूप चार व्रतो वाले धर्म को चातुर्याम धर्म कहा जाता था, क्योकि भगवान् पार्श्वनाथ 'स्त्री' को भी परिग्रह ही मानते थे । भगवान महावीर ने ब्रह्मचर्य को विशेष महत्त्व देने के लिये स्त्री-परिग्रह को भिन्न माना और पाँच महाव्रतो का विधान किया ।
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[ केवल-ज्ञान-कल्याणक